कालमेघ अथवा कल्पनाथ से क्या फायदे है What are the benefits of Kalmegh or Kalpnath?

औषधीय पौधों का परिचय :-  यह एक उन्नत शाखित  एक वर्षीय जुल्म जिसका कांड चौरस हरे रंग का इसकी शाखाएं पतली विपरीत पत्र हरे तथा भलाकर पत्रग्राहक व  नोकदर पत्र किनारी तरंगित होती है, पुष्प छोटे श्वेत सफेद कलर गुलाबी रंग के होते हैं। यह पौधा एकेन्थेशी (वास ) कुल का है। बाजार में ही है देसी चिरायता के नाम से बेचा जाता है।

विभिन्न भाषा में इसके नाम :- संस्कृत में भूनिब ,बंगाली में कालमेघ,  गुजराती में  करियातु, तेलुगु  में नेलवेमू ,फारसी में नैनेहवनंदि, अंग्रेजी में क्रेट ( Creat)इस औषधि के पौधों की उत्पत्ति भारत की है।

औषधिय  प्रायोज्य अंग – इसके पंचांग का उपयोग किया जाता है।

पौधों से प्राप्त तत्व :- इसके पंचांग में पाए जाने वाले मुख्य रासायनिक तत्व एंडोग्राफोलिड  (Andrographolid) तथा कलमेघिन  जो तिक्त होते हैं।  यह तत्व ही औषधि हैं।

कालमेघ के फायदे :- कालमेघ पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में उपयोग किए जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा हैं। इसका उपयोग कई सारी बीमारियों में किया जाता हैं। खासकर इसका उपयोग भारत में उत्तर प्रदेश से लेकर केरल तथा बांग्लादेश पाकिस्तान और सभी दक्षिणी पूर्व एशियाई देशों में  यहाँ  अपने आप उगता हैं। इसे संजीवनी वटी पौधे के तौर पर उगाया जाता है इस पौधे के सभी हिसासे  कड़वे होते हैं जिसके कारण इस पौधे को कड़वाहट का राजा भी कहा जाता हैं।  कालमेघ का उपयोग खून साफ करने वाली कड़वी जड़ी बूटी के तौर पर होता है इसमें मौजूद खून साफ करने के गुण के कारण पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग कुष्ठ रोग ,गोनोरिया, खरोच, फोड़, त्वचा विकार आदि के लिए  कालमेघ से इलाज किया जाता हैं। इसका काडा लीवर की बीमारी और बुखार ठीक करने में उपयोगी है।

कब्ज गैस आदि :- लिवर, अपचां  ,कब्ज, एनोरेक्सिया, पेट में गैस आदि और दस्त आदि में इसके  काढ़ा  का उपयोग किया जाता है मासिक धर्म के दौरान खून के अधिक स्रोत को रोकने के लिए इसकी ताजी पत्तियों के रस का सेवन  बेहत लाभकारी होता है।

बुखार के लिए कालमेघ का उपयोग :-  कालमेघ औषधि गुना से भरपूर छोटा सब होता है इसका उपयोग मुख्य रूप से मधुमेह और डेंगू बुखार के इलाज के लिए किया जाता है यह बूटी तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है जिसे वहां नीलवेबू काष्यम भी कहते है इसका उपयोग डेंगू और चिकनगुनिया बुखार के इलाज के लिए किया जाता हैं।

डायबिटीज के लिए उपयोगी :  इसका उपयोग डायबिटीज की समस्या से बचने के लिए भी किया जाता है दरअसल कालमेघ में एंटी डायबेटिक गुण पाए जाते हैं जो कि डायबिटीज की स्थिति में आपको सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं

हृदय स्वास्थ्य के लिए :- हृदय को स्वस्थ को बनाए रखने के लिए कालमेघ का सेवन किया जा सकता हैं। इसे इसलिए मुमकिन है क्योंकि  कालमेघ में   एंटीथ्रांबोटिक  (Antithrombotic Action  रक्त का  थक्का रोकने के लिए क्रिया ) एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार यह बताया गया है कि यह क्रिया धमनियों को पतला कर रक्त प्रभाव को काफी सुधार कर सकती हैं। इससे हृदय रोग के होने का खतरा कम होता हैं।

कैंसर की स्थिति में :- कैंसर की स्थिति में और इसके कारण होने वाले जोखिम से बचने के लिए भी कल में के पौधों का इस्तेमाल किया जा सकता है ऐसा इसलिए मुमकिन है क्योंकि इसमें एंटी कैंसर बन पाया जाता हैं।

इसके साथ-साथ कालमेघ में एंड्रोग्राफोलाइड (Andrographolide) नमक बियोएक्टिव भी पाए जाते हैं, जो ल्युकेमिया (Leukemia )_ एक प्रकार का ब्लड कैंसर, स्तन कैंसर फेफड़ों  के कैंसर और मेलोनोमा कोशिकाओं (melanoka cells  कैंसर का एक प्रकार) सहित अन्य विभिन्न तरह के कैंसर से बचाव करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करता हैं।

त्वचा के लिए :-  कालमेघ एक प्राकृतिक तत्व है जो  त्वचा के  लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा को ताजगी प्रदान करते हैं और रूखी हुई त्वचा को मुलायम बनाती है। कालमेघ दाद, खाज-खुजली आदि से त्वचा की रक्षा करता है, उसे नमी प्रदान करता है। यह त्वचा को सुंदर और स्वस्थ बनाए रखता है। इसके लिए प्रभावित त्वचा पर कालमेघ पत्तियों को पीसकर लेप लगाएं। इसे रात को सोने से पहले लगाना अधिक फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसके 1-1 टैबलेट या कैप्सूल भी लिया जा सकता है।

बुखार में उपयोग  :- सामान्य  कालमेघ बुखार में का उपयोग बहुत ही लाभदाय  होता है। कालमेघ में विशेष तत्व होते हैं जो शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और बुखार को कम करने में मदद करते हैं। कालमेघ में एंटीऑक्सिडेंट्स , एंटीबैक्टिरियल, एंटीवाइरल गुण होते हैं जो बुखार को कम करते हैं। बुखार से छुटकारा पाने के लिए कालमेघ के पंचांग के काढ़े का दिन में 2-3 बार बुखार ठीक न होने तक सेवन करें। एक बार में 20-30 मिलीलीटर काढ़ा पी लें।

गठिया में लाभदायक :- कालमेघ  गठिया में लाभदायक है। इसमें विटामिन सी, बी, डी, फोलिक एसिड तथा अन्य आवश्यक तत्व पाए जाते हैं, जो गठिया के लिए उपयुक्त हैं। यह जोड़ों के दर्द को कम करने, सूजन को घटाने, गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। कालमेघ का उपयोग मात्रा व्यक्ति की स्थिति और उम्र के आधार पर भिन्न हो सकता है। आमतौर पर वयस्कों के लिए कालमेघ के 1-1 कैप्सूल को गुनगुने पानी के साथ सुबह-शाम सेवन की सलाह दी जाती है। इसके अलावा कालमेघ के तेल को जोड़ों पर मालिश करना भी लाभदायक होता

कालमेघ के नुकसान – Side Effects of Kalmegh in हिंदी 

कालमेघ के नुकसान कुछ इस प्रकार हैं 

  • इसका अत्यधिक मात्रा में किया गया सेवन एलर्जी उत्पन्न कर सकता है।
  • दूसरी दवाओं के साथ कालमेघ का सेवन इंरैक्ट कर सकता है। इसलिए यदि आप किसी दवा का सेवन कर रहे हैं तो कालमेघ को लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लें।
  • कालमेघ का अधिक सेवन लो बीपी और लो शुगर का कारण बन सकता है। इसलिए समय समय पर बीपी और शुगर लेवल मॉनिटर करते रहें।
  • इसके अधिक सेवन से भूख में कमी आ सकती है।
  • गर्भावस्था और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कालमेघ चूर्ण के सेवन से बचने की सलाह दी गई है।

कालमेघ का पौधा, जिसे अभी तक आप एक जंगली पौधा समझ रहे होंगे, उसके फायदों को जानने के बाद अब आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके सेवन से जुड़ी मात्रा के बारे एक बार आहार विशेषज्ञ से जरूर मिलें। कालमेघ के स्वास्थ्य फायदों को पढ़ने के बाद अगर आपको या आपके किसी करीबी को इसके सेवन से कोई लाभ मिलता है, तो उसका अनुभव हमारे साथ जरूर शेयर करें। इसके अलावा, अगर आपके मन में कालमेघ से जुड़ा कोई सवाल हो तो आप कॉमेंट बॉक्स द्वारा बेझिझक हमारे साथ साझा करें।

 

 

 

 

 

अडूसा  क्या काम आता है उसके फायदे What are the benefits of Adusa

 स्वास्थ्य के लिए अडूसा  क्या काम आता है। उसके फायदे गुण और लाभ सभी आपको बताया जाएंगे और  आड़ूसे का क्या उपयोग करें किन-किन बीमारियों में इसका उपयोग करें कितनी मात्रा में इसका उपयोग करें यह सारी बातें आपको बताई जाएंगे  ।

विभिन्न भाषाओं के नाम 

बंगाली – वासक,  मराठी  – अडलास, गुजराती  आरडुसी ,  कन्नड़ आड़ूसोगे,  पंजाबी भकर, तमिल  अटतो।

   What are the benefits of Adusa for health?  स्वास्थ्य के लिए अडूसा  क्या काम आता है उसके फायदे

  अड़ूसे का साधारण परिचय:-  यह वन औषधि भारत के सभी प्रांतों  में प्राकृतिक रूप से  उगती  पाई  जाती है । यह एक सदा हरित झाड़ी नमा क्षुप है । यह 6 से 8 फीट ऊंचा होता है इसकी लंबी शाखों पर सफेद पुष्प होते हैं। इसके पत्ते घर हरे रंग के होते हैं। इस पेड़ की खासियत है कि  इस पेड़ के फूल ,डंठेली ,जड़, तने, सबको हम औषधि में उपयोग कर सकते हैं।

आड़ूसा के औषधीय गुण :- इसके पत्ते ,पुष्प, फल, तथा मूल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है । इसके पत्तों तथा जड़ों का प्रयोग पीलिया खांसी तथा  कुपचन में किया जाता है । इसके पत्तों में पाए जाने वाला तेल तथा  वेसीन खांसी तथा स्वास्थ्य रोग में अत्यंत उपयोग होता है । इसमें एक अन्य हाइपरटेंसिव गुण होता है जो हृदय रोग में बहुत ही उपयोगी होता है। इसके पत्तों से मिले पीले रंग की दाई का निर्माण किया जाता है इसकी जड़ों से खांसी तथा  पीलिया रोगों के लिए औषधि का निर्माण होता है ।

और  अडूसे  का उपयोग

1) सर दर्द में आराम: आड़ूसे  के फूलों को सुखाकर उसे कूट पीस ले । उसके साथ थोड़ी सी मात्रा में गुड मिलाकर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बना ले रोजाना एक गोली के सेवन से सिर दर्द की समस्या खत्म हो जाती है । यह प्रयोग नियमित तरीके से करें।

2) खून को रोकने के लिए : आड़ूसा की जड़ और फूल का काढ़ा करके घी में पक्का शहद मिलाकर खाने से यदि कहीं से रक्त आता हो तो बंद हो जाता है ।

3) जोड़ों का दर्द: इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर जोड़ों के दर्द के उपचार के लिए दिया जाता है तथा गर्व पाटन हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।

4) अस्थमा रोग में : श्वास रोग में इसके सूखे पत्तों को रोल कर सिगरेट की तरह धूम्रपान करने से लाभ होता है।

5) ब्रोकाइटिस एवं खासी : ब्रोंकाइटिस एवं खांसी जैसे जिन रोगों में पत्तों और जड़ों में  अदरक मिलाकर कड़ा तैयार कर पिलाने से अति लाभकारी सिद्ध होता है।

6) महिलाओं का मासिक धर्म : महिलाओं के मासिक धर्म को नियमित करने के उपचार हेतु इसके पत्तों का खड़ा बहुत ही उपयोगी होता है।

7) पीलिया रोग एवं मूत्र :  कामला (पीलिया )रोग तथा मूत्र विकारों के लिए उपचार हेतु इसका उपयोग लाभकारी साबित होता है।

8) नेत्र रोग : नेत्र रोगों में ताजी पुष्प का प्रयोग लाभकारी होता है।

9) रक्त शुद्धीकरण :  रक्त शुद्धीकरण तथा रक्त संचरण नियमित करने हेतु इसके पुष्पों का कड़ा अत्यंत उपयोगी है ।

10) क्षय (टी. वी) रोगों के लिए : वसा  अड़ूसा उसे के तीन लीटर रस में 220 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं जब गड़ा होने को हो तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपली का चूर्ण मिलाले जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाए तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिला कर प्राप्त चलाएं ठंडा होने पर उसमें 120 ग्राम शहद मिला ले 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टीवी के रोगों को दे सकते हैं साथ ही  खांसी , सांस के रोगों ,कमर दर्द ,हृदय का दर्द, रक्तपत्ती तथा बुखार को भी दूर करता है।

11) फोड़े -फुंसी : अड़ूस के पत्तों को पीसकर गढ़ ॎ  लेप बनाकर फोड़े फुंसी की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बाधने से इनका असर कम हो जाएगा । यदि पक गया हो तो शीघ्र ही फूट जायेंगे । फूटने के बाद इसके लेप में थोड़ी पीसी हल्दी मिलाकर लगाने से शीघ्र घाव भर जाएंगे।

12) खुजली : अड़ूस उसेके नर्म पत्ते और अंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अड़ूस  को पानी में उबाले और उसे पानी से स्नान करें खुजली जड़ से खत्म हो जाएंगे।

अडूसा का यह पौधा हमारे देश में लगभग सभी प्रांतों के सभी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एवं उसकी पहचान कर इसके सरल उपयोग ऊपर बताइए की विधि के अनुसार  उनके रोगों से मुक्त पाया जा सकता है। वैसे यदि इसकी खेती विद्युत तरीके से की जाए तो किसानों के लाभ के साथ-साथ प्रजा को भी लाभकारी साबित हो सकता है।

दुख से हृदय की कठोरता कम होती है। दुख वस्तुतः एक प्रकार का ताप है दुख से अभिमान का दमन  होता है। इससे साहस और धैर्य बढ़ता है। एवं दूसरों के लिए अनुभूति  पनपति है।

 

In which disease is Apamarga used? अपामार्ग किस बीमारी में काम आता  है

अपामार्ग अथवा लटजीर :- अपामार्ग किस बीमारी में काम आता  है । अपामार्ग है क्या इसका साधारण परिचय देते हैं हम आपको

विभिन्न भाषाओं में नाम:- बंगाली में आपाग, गुजराती में अंधेरी,मराठी में आघाडा ,तेलुगु में अपामार्ग

साधारण परिचय:- यह वनऔषधि भारत भारत के प्राय सभी प्रति में प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं। यह पौधा गांव शहर वनों तथा उद्यानों में बिना बॉय उत्पन्न होता हैं। यह पौधा प्राय वर्ष ऋतु के समय अत्यधिक मात्रा में प्राकृतिक रूप से उगता हुआ पाया जाता हैं। यह शुष्म  स्वरूप 6 फीट ऊंचा तथा शाखाएं पर्व के ऊपर मोटी होती हैं। पेट नोकदार कुछ गोल होते हैं पुष्प दंड एक से दो फीट लंबा इस पर लाल गुलाबी एवं पीलापन लिए पुष्प उत्पन्न होता हैं। इस दंड पर छोटे-छोटे कांटेदार फल निकलते हैं। जो उल्टे होते हैं तथा कपड़ों के साथ चिपक जाते हैं। अपामार्ग दो प्रकार का होता है लाल अपामार्ग मार्ग सफेद  अपामार्ग । कांड का रंग लाल होता है जबकि सफेद अपामार्ग की शाखाएं श्वेत हरित वाणी तथा पत्ते हरे रंग के सफेदी लिए हुए होते हैं भारतीय चिकित्सा पद्धति में इसका प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है इसी कारण अपामार्ग एक दिव्या बूटी के रूप में जानी जाती हैं।

औषधि उपयोगिता:- अपामार्ग किस बीमारी में काम आता है आयिए  हम जानते हैं। अपामार्ग के सभी अंग औषधि गुना से भरपूर होते हैं इसलिए पंचांग का उपयोग ही रोगों के उपचार केवल लिए किया जाता हैं।

1) पथरी के लिए सबसे  फायदेमंद ,अपामार्ग इसकी जड़ को पीसकर जल में घोलकर पीने से पथरी चूर-चूर होकर बाहर निकल जाती हैं।

2) इसकी ताजी  जड़ का उपयोग  दातुन  के रूप में करने से रस को अंदर उतरने पर भी पथरी में लाभ होता हैं।

3) इसके जड़ की पेस्ट का उपयोग कैंसर उपचार तथा उधर विकारों में लाभकारी होता है।

4) बवासीर में खून आता हो तब इसके बीजों को पीसकर इसका चरण( 6 मास) चावल की धोवन के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।

5) मस्तिष्क दिमाग के रोगियों के लिए इसके बीच की खीर दूध में बनाकर खिलाने से लाभ होता है।

6) अपामार्ग का क्षार स्वास रोगियों के लिए लाभकारी होता हैं।

7) इसके दो तोला बीच लगातार प्रतिदिन प्रातः 365 दिन तक सेवन करने पर व्यक्ति दीर्घायु हो जाता हैं।

8) श्वास नलिका पर अपमार्ग का उत्तम प्रभाव होता हैं।

9) इसका सेवन करने से कब पतला होकर बाहर हो जाता है

10) पथरी ,श्वास, दमा ,मस्तिष्क, रोग जैसे  अनेक बीमारियों से बड़ी आसानी से अपामार्ग उपयोग कर हम लोग दूर कर सकते हैं।

11) अपामार्ग की जड़ , तना फल और फूल को मिलाकर काडा बनाए और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पिए इससे खूनी बवासीर में कौन का  आना बंद हो जाता है

12) अपामार्ग के पंचांग ( जड़,तना ,पत्ती ,फूल ,और फल, ) को पानी में उबालकर काडा तैयार करें और इससे स्नान करें नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ दिन में खुजली दूर हो जाएगी।

13) संतान प्राप्ति के लिए अपमार्क की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक स्राव के बाद नियमित रूप से  21 दिन तक सेवन करने से गर्भधारण होता है। दूसरे दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्ते के दो चम्मच रस को एक कप दूध के साथ-साथ मासिक स्रोत के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती है

14) स्वप्नदोष में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर मात्रा में पीसकर रख ले। एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार एक से दो हफ्ते तक सेवन करें।

15) अगर मुंह में छाले पड़ जाए तो अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगे।

अपामार्ग प्राकृतिक रूप से ही प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो जाती है इसलिए  अपामार्ग की खेती करने की आवश्यकता नहीं पड़ती किंतु आयुर्वेदिक जगत में जिस मात्रा में इसका उपयोग किया जा रहा हैं। उसकी मांग और उसका उपयोग को देखते हुए इसकी खेती करना भी लाभकारी होता हैं। हम लोग इसी खेती अच्छी तरह करके इसका उपयोग कर सकते हैं। काई  जगह आयुर्वेदिक अस्पताल आनेको जगह उनकी आवश्यकता होती है जहां हम इसको अधिक मात्रा में भेज कर धन को अर्जित कर सकते हैं।

What are the benefits of turmeric? हल्दी के क्या-क्या फायदे होते हैं

हल्दी के क्या-क्या फायदे होते हैं आईए जानते हैं ;-हल्दी इसका आकार भी अदरक जैसा होता है पौधों की एक-एक फीट की चोड़ी पत्तियां होती है। पीले रंग के फूल वर्ष के दिनों में बड़े सुनाने लगते हैं। हल्दी के चरण का उबटन किया जाता है। दाल साफ कोपिला रंग देने के लिए हल्दी डालना शोभा भी बढ़ती है सुगंध भी देती है और गुणकारी भी होती है।

हल्दी के फायदे और उसका उपयोग:- 

1) खास ,खुजली, फुंसी आदि में इसका सेवन उपयोगी रहता है।

2) गहरी चोट  लग जाने पर इसका चूर्ण दूध में उपयोग करके मरीज को पिलाया जाता है जिससे मरीज को काफी राहत मिलती है।

3) अलसी तेल नमक और हल्दी की पुटली बनाकर सूजन ‘और दर्द एवं चोट वाले स्थानों की सिकाई की जाती है।

4) हल्दी रक्त शोधक भी है हल्दी को दूध के साथ मिक्स करके गर्म करके भी पिया जा सकता है जिससे रक्त की सफाई होती है ।

5) शरीर पर फुंसियां पित्त उछलनेऔर चट्टे दाद खाज मे शहद के साथ हल्दी को मिलाकर चटाते राहत मिलती है।

6) पेट में कृमि पड़ने पर हल्दी का क्वाथा बनाकर पिलाया जाता है।

7) हल्दी को देसी गुड़ में मिलाकर उसकी गोलिया बनाई जाए और रोगियों को खिलाया जाए कब को दूर किया जा सकता है। गोली को चबा चबा कर खाइये आधे घंटे तक पानी नहीं पीना है

8) खांसी आने पर हल्दी के टुकड़े मुंह में पड़े रहने दीजिए और इन्हें धीरे-धीरे चूसते रहिए तो लाभ होता है।

9) जुखाम , सर्दी, सर दर्द, में गर्म दूध के साथ हल्दी  का उपयोग करने से बहुत लाभ होता हैं।

10) चेहरे पर दाग धब्बे कील मुंहासे हो गए हो तो बेसन के साथ हल्दी को मिलाकर लेप लगाने से सारे दूर हो जाते हैं।

आईए जानते की हल्दी के क्या-क्या लाभ होते हैं। और इसका उपयोग कैसे करें इसको परिपूर्ण तरीके से आपको समझाया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार हल्दी  उष्ण सौंदर्य बढ़ाने वाली रक्त शोधक  कप पित नाशक पित्त शामक एवं लीवर के लिए उत्तेजक मानी गई है। सर्दी लगने पर हल्दी की धूनी दी जाती है। सर दर्द व साइनसाइटिस मैं हल्दी गुनगुने जल के साथ लेने से बॉलखम निकलता वा सर हल्का होता है। मूत्र रोग में इसका  काडा बहुत आराम देता है। आंखों के दुखने पर एक तोला हल्दी एक पाव पानी में  ओटा  कर कपड़े से छानकर आंखों में टपकते हैं,तो लाली जल्दी मिटती है। प्रेमेह  में हल्दी के चूरन को आवला के रस के साथ देते हैं इसका प्रयोग मात्र किसी भी रोगों में दो मन से से अधिक नहीं होना चाहिए अनुपान प्रिंस: गुनगुना जल ,दूध मधु होता हैं।

 

प्रकृति के द्वारा इतना अनमोल खजाना जो हमें मिला है इसका उपयोग हम सहभाविक तरीके से करते हैं अनेक प्रकार से हम लोग हल्दी का उपयोग कर सकते हैं एक प्रकार से देखा जाए तो हल्दी एक हमारे लिए रत्न है जो कि हमारे शरीर को शुद्ध करने में इसका बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग है।

हल्दी के बारे में कुछ ध्यान देने योग्य बातें

बाजार में कई प्रकार की हल्दी मिलती है जिसमें कुछ हल्दी एक होती है जिसमें ऊपर से कलर लगा दिया जाता है जो हमारे शरीर के लिए काफी हानिकारक है ऐसी केमिकल वाली हल्दी से पहले ही दूर रहे प्राकृतिक द्वारा जो हल्दी हमें मिली है उसी का उपयोग करें खेतों में हल्दी उगाए या खेतों की ताजी हल्दी का ही उपयोग करें घर पर लाकर सुखाय और उसे पीसकर पाउडर बनाकर रखें ताकि हमारे शरीर को किसी प्रकार की हनी ना हो

काली हल्दी  सामान्य हिंदी के पत्तों की तरह इसके पत्ते होते हैं इन पत्तों के मध्य में काली धारियाँ होने से काली हल्दी का पौधा पहचाना जा सकता है। यह एक वर्षीय पौधा जिसका कंद सुगंधित दुश्रित वर्ण का एक चक्राकार कड़ो से युक्त होता हैं। यह कंद अदरक से धूसर  नील वर्ण का अत्यंत कादा एवं   श्रंग के समान होता है इसकी सुगंध कपूर के समान होती हैं। काली हल्दी का यह पौधा अमरकंटक एवं पटल लोक कोर्ट में पाया जाता हैं। इसका अधिक दोहन होने के कारण यह प्राकृतिक रूप से नष्ट होती  जा रहा है इसका उपयोग सामान्य कैसे करते हैं अभी हम आपको बताएंगे।

काली हल्दी के औषधीय गुण:-

सौंदर्य प्रसारण में इसका उपयोग त्वचा को निखारने में किया जाता है। एवं काली हल्दी के पेस्ट से शरीर की बदबू और पसीने को दूर किया जाता है चेहरे पर लगाने से कील मुंहासे डाक आदि समस्याओं को दूर किया जाता है। आदिवासी लोगों के द्वारा इसका उपयोग जड़ी बूटी के रूप में  रोगों को निवारण के लिए किया जाता हैं। चोट, मोच ,अंदरूनी चोट ,तथा दमा के उपाय के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। लोगों का यह भी मानना है कि इसका कंद जिसके भी पास होता है उसे कभी धन की कमी महसूस नहीं होती है। इसे कपूर का स्रोत माना गया है प्राकृतिक के अनुसार इसकी सुगंध बहुत अच्छी होती है।

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Benefits and properties of fig leaves for हेल्थ स्वास्थ्य के लिए अंजीर के पत्तों के लाभ और गुण

स्वास्थ्य के लिए अंजीर के पत्तों के लाभ और गुण  :-(Benefits and properties of fig leaves for health )अंजीर का वृक्ष छोटा तथा पर्णपाती (पतझड़ी) प्रकृति का होता है। तुर्किस्तान तथा उत्तरी भारत के बीच का भूखंड इसकी उत्पत्ति स्थान माना जाता है। भूमध्यसागरीय तट वाले देश तथा वहाँ की जलवायु में यह अच्छा फलता-फूलता है। निस्संदेह यह आदिकाल के वृक्षों में से एक हैं। और प्राचीन समय के लोग भी इसे खूब पसंद करते थे प्रकृति के द्वारा मिला हुआ एक चमत्कारी पौधा जो प्रकृति की देन है जिसको हम देखकर भी अनदेखा करते हैं। आईए जानते हैं सस्वास्थ्य के लिए अंजीर के पत्तों के लाभ और गुण अंजीर के पौधे के पत्तों का एक चमत्कारी गुण जिसे जानकर आप चौक जाओगे जबकि अंजीर के फलों को उनके स्वादिष्ट स्वाद और पोषण संबंधित लाभों के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है अंजीर के पेड़ की पत्तियों मे औषधीय गुण पाए जाते हैं। जो रोगियों और पीड़ित  लोगों के लिए विशेष रूप से लाभकारी साबित होते हैं।स्वास्थ्य के लिए अंजीर के पत्तों के लाभ और गुण   में आपको बताने जाऊंगा जिससे आप खुद देखकर चौंक जाओगे

* अंजीर के पत्ते इन बीमारियों में उपयोग :-

1) अंजीर के पेड़ की पत्तियों मे औषधि गुना की अपनी श्रृंखलाएं होती है जो मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होते हैं

2)अंजीर के पेड़ की पत्तियों में ऐसे यौगिक प्रचुर मात्रा में होते हैं जो रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

3) अंजीर के पत्तों का सेवन करने पर इंसुलिन की आवश्यकता को कम करने का सुझाव देते हैं।

4) अंजीर के पत्तों के फायदे सिर्फ़ ब्लड शुगर को नियंत्रित करने तक ही सीमित नहीं हैं। इनमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं और विभिन्न पुरानी बीमारियों से जुड़े ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं।

5) वे एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक और रेचक के रूप में कार्य करते हैं, जिससे वे मूत्र पथ और पाचन तंत्र के लिए सहायक होते हैं।

6) वे अल्सर के लक्षणों को कम करने और रक्त में ट्राइग्लिसराइड्स और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में सहायता कर सकते हैं।

7) इसके अलावा, अंजीर के पत्तों का रस, पत्तियों से निकाला जाने वाला दूधिया तरल, अपने प्रोटीयोलाइटिक एंजाइमों के कारण मस्से हटाने की क्षमता के लिए जाना जाता है।

* इसका उपयोग अंजीर के पत्तों की चाय बनाना एक सरल नुस्खा

अंजीर के पत्तों का उपयोग करने का सबसे सरल और सबसे प्रभावी तरीका अंजीर के पत्तों की चाय बनाना है। यह मधुमेह प्रबंधन योजना के लिए एक उत्कृष्ट अतिरिक्त हो सकता है या बस इसके स्वास्थ्य लाभों के लिए इसका आनंद लिया जा सकता है। यहाँ बताया गया है कि आप इसे कैसे तैयार कर सकते हैं।

*सामग्री

ताजा या सूखे अंजीर के पत्ते

पानी

निर्देश:

अगर अंजीर के पत्ते ताजे हैं तो उन्हें छोटे टुकड़ों में काटना शुरू करें। अगर आप सूखे पत्तों का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो वे पहले से ही चाय बनाने के लिए उपयुक्त रूप में हो सकते हैं।

हर कप चाय के लिए लगभग एक चम्मच कटे हुए अंजीर के पत्ते लें।

पानी उबालें और उसमें अंजीर के पत्ते डालें। उन्हें लगभग 15 मिनट तक उबलने दें। यह प्रक्रिया पत्तियों से लाभकारी यौगिकों को निकालने में मदद करती है।
उबलने के बाद, पत्तियों के टुकड़े निकालने के लिए चाय को छान लें।
चाय को गर्म करके परोसें। ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए, प्रतिदिन 1-2 कप पीने की सलाह दी जाती है।

यह चाय न केवल रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करती है, बल्कि शरीर पर सुखदायक प्रभाव भी डालती है, जिससे यह दिन के किसी भी समय पीने के लिए एक सुखद पेय बन जाती है

*आवश्यक सूचना

परामर्श के लिए किसी निजी सहायक की सलाह जरूर ले