कस्तूरी भिंडी (जंगली भिंडी) किस काम में आती है।

कस्तूरी भिंडी (जंगली भिंडी) किस काम में आती है।

साधारण परिचय :- कस्तूरी भिंडि लता कस्तूरी के नाम से औषधि जगत में तथा सुगंधित होने के कारण इत्र जगत में बहुत ही प्रचलित है औषधि जगत में इसके बीच मास्कदान के नाम से जाने जाते हैं पौष्टिक पदार्थों में टॉनिक के रूप में जाना जाता है यह पौधा झाड़ी नुमा आमतौर पर मिश्रित वनस्पतियों के साथ छत्तीसगढ़ी के विस्तार रायपुर बिलासपुर तथा रायगढ़ के वनों में प्रकृति रूप से पाया जाता हैं। इसके पत्ते अनियमित दत्त युक्त, रोम युक्त वृंत के तलस्थ भाग में उपपात्र होते हैं। इसके पुष्प पीले रंग के पंखुड़ियां के बीच में हल्का बैंगनी रंग अत्यंत आकर्षित लगता हैं। इसके फल दो से तीन इंच लंबी किंतु दिखने में भिंडी जैसे होते हैं।

कस्तूरी भिंडी के  फायदे :-

1. त्वचा पर निशान या घाव :-  जन्तुदांश से त्वचा पर निशान घाव बन जाते हैं प्रभावित त्वचा पर कई बार सूजन भी आ जाती हैं। कीड़ों का काटना अधिकतम हानिकारक नहीं होता है यह खुद ही कुछ समय में ठीक हो जाता हैं। लेकिन इसके दौरान दर्द चुभन और जलन बहुत होती है ऐसे में कस्तूरी भिंडी की छाल का लेप लगाने से दर्द कम होता है और काटने के घाव ठीक हो जाते हैं इतना ही नहीं कस्तूरी भिंडी से सांप के काटने पर भी लाभदायक होता हैं। इसका असर साप के जहर को भी कम कर देता हैं। यह पौधा अदभूत हैं। इसके एंटीसेप्टिक एंटीऑक्सीडेट्स एंटीबैक्टीरियल आदि गुणो के हमारे स्वास्थ्य पर चमत्कार फायदे होते हैं।

2 कैंसर रोगों में लाभदायक :- कस्तूरी भिंडी पेट के कैंसर को बचाने में और ठीक करने में एक महत्वपूर्ण औषधि मानी जाती है कस्तूरी भिंडी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होती है या पेट पर बना रही कैंसर सेल्स से लड़ने में और रोकने में मददगार होती है

3) पेशाब में जलन :-

पेशाब में जलन एक दर्दनाक समस्या होती हैं। पेशाब करते समय जलन और दर्द से बेहद बेहाल हो जाते हैं। यह कई वजह से होता है  जैसे की पथरी मूत्र मार्ग से सूजन मूत्र मार्ग से संक्रमण योनि सोधक आदि इस समस्या के लिए आप मस्कंदना का सेवन कर सकते हैं। कस्तूरी भिंडी में एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो की बैक्टीरिया की ग्रोथ को रोकते हैं। साथ ही  सूजन रोधक गुण मूत्र मार्ग की सूजन काम  करना,संक्रामक की छुट्टी कर देती हैं। कस्तूरी भिंडी एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती है सेहत के फायदे के लिए प्रसिद्ध भिंडी का सेवन आवश्यक करना चाहिए

4) कब्ज :-

मुस्कदाना कब्ज की समस्या को ठीक करने में बहुत फायदेमंद मानी जात मुस्कदाना  में फाइबर कंटेंट ज्यादा होते हैं। और मल त्याग को आसान और पीड़ा रहित कर देती हैं। कब्ज एक बहुत आम और परेशान कर देने वाली समस्या है जिससे हर दूसरा इंसान जूझ रहा हैं। कब्ज अक्सर खाना ठीक से  ना खाने के कारण होता हैं। इसमें मल त्याग के दौरान जलन दर्द और दबाव महसूस होता है मल भी बहुत कम सुखा और पतला होता हैं। इसके उपचार के लिए हमेशा फाइबर की मात्रा अपने आहार में अधिक कर लेनी चाहिए  फाइबर मल को सॉफ्ट कर देता हैं। और मल  के घाव भर देता हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए मुस्कन्नाव को अपनी डाइट में शामिल करना बेहतर माना जाता है

5) बवासीर :- कस्तूरी भिंडी बवासीर  की बीमारी में लाभदायक होती है कस्तूरी भिंडी की जड़ को सुखा कर और उसको जलाकर उसकी भष्म बना लो भस्म बनाने के बाद उसको नारियल के तेल में मिक्स करके बवासीर की जगह पर लगाओ कुछ दिन मे ठीक  जायेगी

6) शक्ति वर्धक :- कस्तूरी भिंडी के सत्व को अगर आप रोजाना दूध के साथ लेकर इसका प्रयोग करेंगे तो यह आपकी शारीरिक शक्ति को बढ़ाने का काम करता हैं। एक बल् वर्धन कार्य करता हैं।  शरीर की ऊर्जा बढ़ाने का कार्य करता हैं। शरीर में एनर्जी और फुर्ती लाने का कार्य करता हैं।

7) स्वप्नदोष और  वीर्य में व्रद्धि :- कस्तूरी भिंडी के उपयोग से हम स्वप्नदोष और वीर्य में वृद्धि कर सकते हैं। यह कई सारी बीमारियों को दूर करती है इसके साथ-साथ स्वप्नदोष  में भी इसका काफी फायदेमंद उपयोग किया जाता है इसका उपयोग हम उसके फल को धूप में सुखाकर उसको पीसकर दूध के साथ लेने से यह समस्याओं से आसानी से छुटकारा पा सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सफेद मुसली क्या काम आती है safed musli kya kaam aati hai

सफेद मूसली की विभिन्न प्रजातियां : – क्लोरोफायटम  बोरिविलिएनम ,क्लोरोफायटम ट्यूबरोजम, क्लोरोफायटम अरुणडीनेशियम , क्लोरोफायटम  एटेनुएटम  आदि ।

साधारण परिचय  :-  यह एक कंद युक्त वन औषधि है ,जिसकी अधिकतम ऊंचाई डेढ़ फीट तक होती है इसके कंद भूमि में अधिकतम 10 इंच नीचे जाते हैं। जड़े रसदार होती है, इन्हें फिंगर्स भी कहते हैं। प्राकृतिक रूप से भारत के जंगलों में पाए जाने वाली सफेद मूसली की जाती क्लोरोफायटम  बोरीविलिएनम, क्लोरोफायटम ट्यूबरोजम हैं। यह पौधा जंगल में वर्षा ऋतु के समय अपने आप उगता हैं।

जंगल में पाए जाने वाली इन दोनों प्रजातियों मे मुख्य अंतर यह है कि ट्यूबरोजम में क्राउन के साथ एक धागा जैसा लगा होता है तथा इसके साथ-साथ उनकी मोटाई बढ़ती है, जबकि क्लोरोफायटम बोरीवलीएनम  में रसदार जोड़ों की मोटाई ऊपर से अधिक या मोटाई एक जैसी होती है खेती के लिए बोरीविलीएनम  प्रजाति अधिक उपयुक्त मानी गई है। सफेद मूसली मानव जाति के लिए प्राकृतिक का एक अनोखा उपहार है। यह एक दिव्या जड़ी बूटी है भारत के जंगलों में पाए जाने वाली इस जड़ी बूटी का दोहन अंधाधुन होने के कारण यह विलुप्त होने की कदर पर हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :- गुजराती – धोलि मुसलि, उत्तर प्रदेश- खैरुबा , मराठी- सुफेता मुसली, मलयालम – रादेवेली , तमिल-  तामीर वितांग । सफेद मूसली के फायदे  :-

  स्वप्नदोष : – आजकल  जवानों को सपना दोष की शिकायत होती है इसके साथ-साथ काम कीड़ा कर रहे ऐसे सपने गिरते हैं। इससे लौकिक उत्तेजना मिलकर दिन में शुक्रस्खलंन हो जाता है जिसे स्वप्नदोष कहते हैं इस स्थिति में सफेद मूसली आती फायदेमंद होती हैं।

कामवासना कम होना : – एक संरक्षण से पता लगा है कि भारतीय पुरुषों में उम्र के 45 के बाद कामवासना काम हो जाती है इसे आप मेल क्लायमेट्रिक बोल सकते हैं। जैसे स्त्रियों में  मेनापहुंच होती है इसके लक्षण कुछ इस प्रकार है कामवासना नष्ट हो जाना, मन एकाग्र नहीं होना शरीर और मन की थकान महसूस होना स्मरणशक्ति न्यूनता मनोदेनीय छाती में दर्द अनाकलनिय स्नायवीय  वेदना इसमें सफेद मूसली जादू जैसा असर दिखाती है सेवन के कुछ ही हफ्ते से इसके परिणाम शुरू होते हैं वह एक साल सफेद मूसली लेने से अधिकतम लाभ मिलने लगता है और सारी समस्याओं का निवारण हो जाता है। शुक्राणु पानी से पतले होना :-  कुछ पुरुषों में शुक्र पानी जैसा पतला होने के कारण समस्या होती हैं। तो कुछ पुरुष में लिंग की प्रह्रर्षितावस्था अल्पकाल होती है ,कुछ मधुमेही  में तो बिल्कुल ही नहीं होते हैं,इन सभी प्रश्न के लिए आप सफेद मूसली एक बहुमूल्य उत्तर है कई जेष्ट् नागरिक में क्रॉनिक फाटीगसिन्ड्रोम की शिकायत होती हैं। सफेद मुसलि इसमें आती फायदेमंद होती हैं।

युवती  में स्तनों का आकार :-   आजकल कहीं  युवती में स्थानों के आकार बहुत ही छोटा दिखता है, या ना के बराबर होता हैं। यह बहुत ही जटिल समस्या हैं। उसे उसे युति के मन में उदासी होती है आपको किसी प्रकार के डरने की कोई बात नहीं अगर आप सफेद मूसली 6 से 12 महीने के अंदर तक उसका उपयोग करते रहते हैं तो स्थानों का आकार सुडौल बनने में प्रयुक्त होता हैं।

सेक्स पावर बढ़ाने में उपयोग :- आप किसी भी सफेद मूसली के फायदे के बारे में बात करें तो वह आपको यही बताएंगे कि सफेद मूसली यौन शक्ति बढ़ती हैं। वह कुछ लोग तो उसके इस्तेमाल से हर्बल वियाग्रा के तौर पर करते हैं। सफेद मूसली पाउडर में ऐसे गुण होते हैं जो कामोत्तेजना बढ़ाने के साथ-साथ टेस्टोस्टेरोन जैसे प्रभावित वाले सेक्स हारमोंस का स्तर बढ़ा सकते हैं इसलिए सेक्स क्षमता बढ़ाने के लिए सफेद मूसली का उपयोग करना सही हैं। सेवन की विधि :-  एवं शक्ति बढ़ाने के लिए आधा चम्मच मूसली पाउडर को गुनगुने दूध के साथ दिन में दो बार खाना खाने के बाद ले सकते हैं।

शीघ्रपतन रोकने में उपयोग :- खराब जीवन शैली और खान-पान की वजह से अधिकांश लोग शीघ्रपतन की समस्या से ग्रसित रहते हैं कई लोग संकोच के  कारण डॉक्टर के पास भी नहीं जाते और इंटरनेट पर शीघ्रपतन रोकने का उपयोग खोजते रहते हैं। एसे लोगों के लिए सफेद मुसलि एक कारगर औषधि के रूप में साबित होती हैं। इसे आप शीघ्रपतन की दवा के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।

सेवन की विधि :-  आधा चम्मच सफेद मूसली पाउडर में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दूध के साथ दिन में दो बार खाने के बाद ले। नपुंसकता से बचाव :- शोध के अनुसार सफेद मूसली वीर्य का उत्पादन बढ़ाती है और वीर्य की गुणवत्ता में सुधार लाती है ऐसा माना जाता है कि इसके नियमित सेवन से नपुंसकता के खतरे को काफी हद तक काम किया जा सकता हैं। कोच के बीच के साथ सफेद मूसली का सेवन नपुंसकता के इलाज में काफी उपयोगी हैं। सेवन की विधि :-  नपुंसकता  दूर करने के लिए एक से डेढ़ चम्मच मुसलि शुद्ध गाय के दूध के साथ दिन में दो बार ले। शारीरिक शक्ति :-  सेक्स क्षमता बढ़ाने के अलावा शरीर की ताकत बढ़ाना सफेद मूसली के प्रमुख फायदे में शामिल है यही वजह है कि आज के समय में अधिकांश जिम जाने वाली लड़के बॉडीबिल्डिंग के लिए सफेद मूसली को सप्लीमेंट की तरह इस्तेमाल करते हैं। अगर आप भी शारीरिक रूप से कमजोर है या थोड़ी सी मेहनत करने के बाद तक जाते हैं तो सफेद मूसली आपके लिए बहुत फायदेमंद हैं।

सेवन विधि :- सफेद मूसली के एक-एक कैप्सूल का सेवन सुबह और शाम को दूध या पानी के साथ सेवन करे ।

कैंसर से बचाव :-  कई विशेषज्ञ का दावा है की सफेद मूसली के सेवन से कैंसर के खतरों को कम किया जा सकता हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित कर सकती है क्षमता को प्रभावित तरीके से मजबूत करती है जिससे कैंसर कोशिकाओं के बड़ने का खतरा कम होता हैं और कैंसर से बचाव होता हैं।

सेवन विधि :- कैंसर से बचाव के लिए आधा चम्मच मूसली पाउडर को दूध से पानी के साथ दिन में दो बार सेवन करें।

सफेद मूसली के नुकसान और सावधानियां यह सच है कि सफेद मूसली के फायदे बहुत ज्यादा है लेकिन अगर आप जरूरत से ज्यादा मात्रा में या गलत तरीके से इसका सेवन कर रहे हैं तो आपको सफेद मूसली के नुकसान झेलने पड़ सकते हैं। हालांकि सफेद मुसलि के नुकसान से संबंधित ज्यादा वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं हैं। फिर भी कोई आयुर्वेदिक विशेषज्ञ इससे जुड़े नुक्सानो के बारे मे बताते हैं। आईए जानते हैं।

1. भुख में कमी  :- अगर आप जरूर से ज्यादा मात्रा में सफेद मूसली का सेवन कर रहे हैं तो यह आपकी बुक को कम कर सकती है इसलिए डॉक्टर द्वारा बताएं खुराक के अनुसार ही सेवन करें और इसके सेवन के दौरान भूख में कमी महसूस हो तो आयुर्वेदिक चिकित्सा के साल ले ।

2. कप में बढ़ोतरी :- सफेद मूसली की तासीर ठंडी होती हैं। और यह शरीर में कब को बढ़ाती है इसलिए अगर आप कफ से जुड़ी  समस्याओं से पहले से ही पीड़ित है तो सफेद मूसली के सेवन से परहेज करें या चिकित्सक की देखरेख में ही सफेद  मुसलि का सेवन करें

3. गर्भावस्था एवं स्तनपान :- इस बात के पर्याप्त प्रमाण  मौजूद नहीं है कि सफेद मूसली का गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान सेवन सुरक्षित है या नहीं इसलिए इस दौरान सफेद मूसली के सेवन से परहेज करें अगर आप इसका सेवन करना चाहती है तो स्त्री रोग विशेषज्ञ सलाह के अनुसार करें

4. पाचन तंत्र पर प्रभावित :- अगर आपकी पाचन क्षमता  कमजोर है तो सफेद मूसली की कम मात्रा का सेवन करें क्योंकि यह देरी से पचती है जिसकी वजह से आपको पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। ऐसे में बेहतर होगा कि आप दिन में एक बार सिर्फ आधा चम्मच सफेद मूसली चूर्ण का सेवन ही करें अगर आप सफेद मूसली के फायदे और नुकसान से भली भाती परीचित हो चुके हैं। आपकी जरूरत और रोगों के हिसाब से इसका सेवन शुरू कर  सकते है और स्वस्थ रहे अगर इसके सेवन के दौरान किसी भी तरह की समस्या होती है तो तुरंत अपने नजदीकी डॉक्टर से संपर्क करें ।

मेथि दाना के फायदे और नुकसान methi dana ke fayde or nuksan

मेथीमेथी  के पत्ते का तो अच्छा  साख या सुखी भजिया बनती हैं। किंतु उसके बीच मसले के काम आते हैं। भिगोने से वे फुल  जाते हैं छिलका उतारने पर कड़वाहट तो काम हो जाती है किंतु साथ ही गुण भी काम हो जाता हैं। इतने पर भी उसकी गर्मी प्रधान गुण छिलके सहित या छिलके रहित स्थिति में अपना काम करता है मेथी के बीच के की पतली दाल तली हुई भुजिया भी बना  सकते हैं। घी शक्कर के साथ उसके लड्डू भी बन सकते हैं औषधि प्रयोग में इसके बीजों का चूर्ण काम में लिया जा सकता है ऐसी भी हो सकता है कि उबाल छानकर उसके पानी को गुनगुनी स्थिति में पिया जाए ।

अन्य भाषा में मेथी के नाम :-  ( Name of Fenugreek in Different Languages) 

मेथी का वानस्पतिक नाम ट्राईगोनेला फिनम् ग्रीकम्  है। यह फेबेसी कुल का पौधा है अंग्रेजी और  विविध भारतीय भाषाओं में इसका नाम निम्न अनुसार है।

हिंदी – मेथी

इंग्लिश – फेनुग्रीक , ग्रीक हे, ग्रीक क्लोवर

संस्कृत – मेथीका , मेथिनि ,मेथी ,दीपनि, बहुपत्रिका ,बोधिनी ,बहुबीज, ज्योति, गंन्धफला, वल्लरी ,चंद्रिका , मिश्रापुष्पा , पितबीजा ,

ओरिया –  मेथी

कांनाड – मेंन्ते

गुजराती – मेथी, मेथिनी

तमिल – मेंटल  वण्डयम्

नेपाली – मेथी

मलियालम – उल्लव , उलुवा

मेथी गठिया रोगों में सहायक  :-  मेथी गठिया जिससे रोगों में विशेष रूप से कम आती है। जकड़न  सूजन में भी उससे लाभ होता हैं।

सर्दी जुकाम :-  जुकाम सर्दी के अतिरिक्त बहुमूत्र जैसे रोगों पर भी उसे अंकुश लगता है भूख खुलती है और अपचां दूर होता हैं। मेथी में जनवरी मार्च में पुष्प और फल लगते हैं और छोटी मेथी का उपयोग ही साग सब्जी में होता हैं।

वात नाशक :-  मेथी आयुर्वेद के मतानुसार मूलतः वात नाशक हैं। नाड़ियों की दुर्बलता में भी इसका उपयोग करते हैं।

प्रसव के बाद :- प्रसव के बाद स्तनो से दूध आने व हारमोंस की अनियमितता के लिए मेथी के मोदक खिलाने का प्रावधान भारतीय परिवारों में होता हैं।  

शरीर में थकान :-  दुर्बलता शरीर में पीड़ा थकान में यह टॉनिक का काम करती है

मेथी का पंचांग भी प्रयुक्त होता हैं। एवं बीज चूर्ण भी 1 से 3 ग्राम की मात्रा में  बीजो से सब्जियों में छोक देते हैं। मेथी दाने  की सब्जी को लोग बड़े शौक से कहते हैं।

कब्ज  और एसिडिटी :-  सुबह उठकर बिना मुंह धोए मेथी दाने को पीतल के लोटे में रात में पानी भरकर रखकर रखें और मेथी दाने को उसे पानी  के साथ ले इसे कब्ज और  एसीडीटी दूर हो जाती है।

बालों का झड़ना रोकने में मेथी  के औषधीय गुण फायदेमंद  :

मेथी के फायदे से बालों का झड़ना रोका जा सकता हैं। इसके लिए एक से दो चम्मच मेंथी  के दानों  को रात भर के लिए भिगो दे । इसे सुबह पीसकर बालो की जड़ों में लगाए ।  लगे 1 घंटे बाद बालों को धो ले सप्ताह में दो से तीन बार लगाने से बालों का गिरना बंद हो जाता हैं।

मेथी के सेवन से हृदय रोग में लाभ :- 

* एंटीऑक्सीडेट गुणो  के कारण मेथी  हृदय रोग के लिए लाभकारी है यह रक्त संचार को सही रखना हैं। मेथी में घुलनशील फाइबर होता है जो हृदय रोग के खतरों को कटाता है हृदय को स्वस्थ रखने के लिए मेथी के 10 – 15 मिली कड़े  में शहद  मिलाकर पिए ।

* मेथी के दाने खराब कोलेस्ट्रॉल को भी कम करते हैं।  रोजाना  मेथी के  दानों के चूर्ण का सेवन करने से खराब कोलेस्ट्रॉल कम होता हैं।

पेट के रोगों में मेथी के सेवन से लाभ  :-

मेथी के बीज कब्ज दूर करने में काफी लाभकारी है। मेथी, चंद्रासुर मंगरेला ( कलौंजी) और अजवाइन का रोजाना सेवन करें । इससे गैस संबंधित रोग अपच पेट में दर्द भूख की कमी पेट का फूलना पेट दर्द और कमर दर्द आदि रोगों में लाभ होता हैं।

मेथी के सेवन से कब्ज का इलाज : 

कब्जे में मेथी का औषधीय गुण फायदेमंद होता हैं। अगर कब्ज से परेशान रहते हैं तो मेथी के पत्तों का साग बनाकर खाएं इससे कब्जे की परेशानी से राहत मिलती है मेथी मल को नरम करके कब्ज को मिटाती हैं।

ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में  लाभदायक : 

* आप मेथी के फायदे डायबिटीज में भी ले सकते हैं।  मेथी का नियमित सेवन करने से खून में चीनी के मात्रा नियंत्रित रहती हैं।

* एक चम्मच मेथी के  दानों का चूर्ण बना ले इसे रोज सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ ले।

* मेथी के दानों को रोज पानी में भिगो दे। इसे  सुबह  चबा चबा कर खा  ले ऊपर से मेथी दाने का पानी पी  ले ।

प्रवास के बाद महिलाओं को होता है मेथी के सेवन लाभ

* महिलाओं को प्रवास के बाद मेंथी के औषधिय गुण से बहुत लाभ मिलता हैं। मेथी दाना से प्रस्तुत स्त्रियों मे स्तनों में दूध  बड़ता है मेथी के सेवन से माता के दूध की गुणवत्ता भी बढ़ती हैं। जिससे शिशु का स्वास्थ्य भी अच्छा होता है माता मेथी की सब्जी सुप आदि का सेवन कर सकती है।

* जिराह, सोफ,  सोया, मेथी ,आदि में गुड ,दूध ,एवं गाय का घी मिलाकर पका ले । इसका सेवन कराए । इसे योनि के रोग, बुखार टीवी ,खासी, सांसों ,का फूलना एनीमिया ,दुबलापन आदि बीमारियों से लाभ होता है

* गैस बनने और गैस के कारण होने वाले रोगों में भी मेथी के सेवन से लाभ होता है

मासिक धर्म विकार में मेथी के फायदे 

* आज बड़ी संख्या में महिलाएं मासिक धर्म से संबंधित समस्याओं से पीड़ित हैं। महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान पेट में दर्द अधिक रक्त स्रोत जैसी परेशानी होने लगती हैं। मासिक धर्म की प्रक्रिया को एस्ट्रोजेन नामक एक हारमोंस नियत्रित करता हैं। मेथी के दानों में एस्ट्रोजन के गुण होते हैं। इसलिए यह मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं में लाभदायक होता हैं। मेथी के सेवन से खून भी बनता है और दर्द भी काम होता हैं। मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने के लिए मेथी के एक से दो ग्राम बीज का सेवन करें

* आप मेथी दानों की चाय बनाकर भी पी सकते हैं। मेथी की चाय को मीठा बनाकर थोड़ा ठंडा होने दे इसमें शहद मिला ले अधिक लाभ होगा।

पाचन तंत्र  विकार में मेथी के फायदे :  

मेथी में उष्ण और दीपन गुण पाए जाते हैं। इसके कारण यह पाचन अग्री को बढ़कर पाचन तंत्र को मजबूत रखता हैं। यह भूख  बढ़ने में भी मदद करता हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हडजोड़ अथवा अस्थि श्रृंखला के फायदे hadjod athava asthi shrinkhala ke fayde

हडजोड़ का साधारण परिचय  :-  लता जाति कि यह वनोंषधि प्राय: उष्ण  प्रदेशों में अधिक होती हैं। यह लता अन्य लताओं की तरह वर्षों के साथ ना लिपटकर केवल  वृक्ष का सहारा लेकर चढ़ती है तथा लटकती रहती है इसका  कड़ी हरा मांसल बीच-बीच में संधिया युक्त तथा चोपहल होता हैं।  संधियों पर सूत्र होते हैं तथा सूत्रों में विपरीत संधियों पर  पत्ते निकलते  हैं  इसके पत्ते चौड़े हृदय कार दंतुर  तथा मांसल होते हैं। श्वेत हरित वर्णित पुष्प फल गोल भारी पकाने पर लाल रंग के हो जाते हैं इसके पत्ते तथा कांड रस युक्त होता है इसके ताजा पौधे मे कैरोटीन ताजा स्वरस में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है इसके पत्तों तथा कांड का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम :-  गुजराती -हाड सांकल ,मराठी – कांडबेल ,बंगाली -हाडभागा, कन्नड़  – मंगवल्ली,  तेलुगू – नेल्लेरू, तमिल – पेरंडै

                                                                                               हडजोड़ अथवा अस्थि श्रृंखला के फायदे

औषधी उपयोग :- 


टूटी हुई हड्डियों को जोड़ना :-  प्रायः इसके ताजे  कांड एवं पत्तों का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।  इसको काटकर इसका लेप टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए किया जाता है यह प्रत्येक प्रभावशाली होता है। इसके पत्तों तथा कांड से सिद्ध किया हुआतेल भी टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने के लिए प्रभावी पाया  गया है। इस तेल की मालिश करने से टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।

पेट के विकारों को दूर :- 

हाथ जोड़ के इस्तेमाल से पेट से जुड़े विकारों को दूर कर किया जाता है अक्सर हम में से कई लोग को मसालेदार खाना खाने की आदत होती है और समय खाना खाने से पेट में गैस और अपहचन जैसी अनेक समस्या होने लगती हैं। इन समस्याओं को ठीक करने के लिए आप हाथ जोड़ की मदद ले सकते हैं। घरेलू उपचार कर सकते हैं इसके लिए हाथ जोड़ के पत्तों से करीब 5 से 10 मिली रस निकाल लीजिए अब इस वर्ष में थोड़ा सा शहद मिक्स करके पी जाइए इससे पाचन क्रिया ठीक होती है साथ-साथ पेट से जुड़ी आने की समस्याओं को आराम मिलता हैं।

पित्त दोष के संतुलन के कारण पेट खराब हो सकता है जिससे पाचन कमजोर या खराब हो जाता है और हड़जोड़ अग्रि को बढ़ाता है और पाचन में सुधार करता है जिससे इसके  उष्णा   पाचन गुना के कारण पेट की खराबी  के लक्षण काम हो जाते हैं।

घाव मे असरदार :- हडजोड़ घाव को सुखाने में असरदार हो  सकता है अगर आपको किसी कीट के काटने पर घाव हो जाता है तो उसे स्थान पर हडजोड़ का रस लागिये इससे घाव जल्दी ठीक हो जाता हैं।

गठिया के दर्द में आराम :- बढ़ती उम्र के कारण कई लोगों को गठिया की परेशानियों का सामना करना पड़ता हैं।  लेकिन आपको बता दे की गाड़ियों की परेशानियों से राहत मिलती है

उपयोग –  हडजोड़ का एक भाग  छिल्का रहित तना ले अब इसमें उड़द  की दाल  के साथ पिस ले  और तिल के तेल में मिला ले और इसकी वाटिका बना ले इस वाटिका का सेवन करने से वात रोग से लाभ मिलता हैं। लगभग 15 दिन तक इसका सेवन करने से   गठिया की समस्या से आराम मिल सकता  हैं।

गठिया जिसमें  आयुर्वेद में वात रक्त के नाम से जाना जाता हैं। एक विकार है जिसमें व्यक्ति  के  जोड़ों में लालिमा सूजन और सबसे महत्वपूर्ण दर्द का अनुभव होता है यह सभी लक्षण वाद दोष के असंतुलन के कारण होते हैं जो रक्त धातु को और अधिक असंतुलित कर देता है हडजोड़ घटिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है और अपने बात संतुलन और उष्णा  (गर्म)  गुना के कारण प्रभावित दर्द वाले क्षेत्र को गर्मी प्रदान करता हैं।

हडजोड़ अपने एंटीऑक्सीडेट और सूजन रोधी गुना के कारण रूमेंटीइड गठिया के लक्षणों को  प्रतिबंधित करने में मदद कर सकता है हडजोड़ में मौजूद कुछ घटक एक सुजान करी प्रोटीन की गतिविधि को रोकते हैं इसमें गठिया से जुड़े जोड़ों के दर्द और सूजन में कमी आती हैं।

रूमेटॉइड  अर्थराइटिस जिसे आयुर्वेद में अमावस के नाम से जाना जाता हैं। एक ऐसी बीमारी है जिसमें वत दोष बिगड़ जाता है और जोड़ों में अमा जमा हो जाता हैं। आमवात कमजोर पाचन अग्रि से शुरू होता है जिसमें अमा का संचय होता हैं। (अनुचित पाचन के कारण शरीर में विषाक्त अवशेष रहता है ) वात के माध्यम से अमा को विभिन्न स्थानों पर ले जाया जाता हैं।  लेकिन अब उसे अवशोषित होने के बजाय यह जोड़ों में जमा हो जाता हैं। और रूमेटाॅइड  गठिया को जन्म देता हैं। हडजोड़ पाचन में सुधार करने में मदद करता है जो अपने वात संतुलन और पचन गुणों के कारण आम के गठन को रोकता हैं।  जिसमें रूमेंटोइड गठिया के लक्षण काम हो जाते हैं।

ब्लडिंग को कम करें  :- अगर आपके शरीर में कटने या फिर छीलने की वजह से काफी ज्यादा ब्लडिंग हो रही हो तो इस स्थिति में हडजोड़  आपके लिए गुणकारी हो सकता हैं। इसके लिए हडजोड़ के तनो या जड़ से रस निकाल ले अब इस रस को अपने प्रभावित हिस्से पर लगाएं  इससे रक्त स्राव की शिकायत दूर

हडजोड़ के  नुकसान :-  हाथ जोड़ स्वास्थ्य के लिए गुणकारी हो सकता है यह विषैली जड़ी बूटी नहीं है लेकिन इसका इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से जरूरी सलाह ले गर्भ अवस्था स्तनपान हाई ब्लड प्रेशर डायबिटीज से लोगों को इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।  खाली पेट इसका सेवन करने से बचे । इसके कारण आपको  उल्टी मतली की शिकायत हो सकती है। अधिक मात्रा में हडजोड़ का सेवन करने से  बचे और बिना डॉक्टर की सलाह के इसका सेवन करने से आपको कई समस्या हो सकती है जैसे

पित्त को बढ़ावा देने वाली समस्याएं ,एसिडिटी, दिल की धड़कन तेज ,होना पेट में सूजन हाथ पैर में जलन अल्सर और छाले हो है तो भी इसका सेवन न करें

हडजोड़ की खेती :- प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले या उद्यानों में वृक्ष के सहारे लटकते या लता रूपी वनस्पति औषधि के रूप में अधिक उपयोगी होने के कारण इसकी खेती भी लाभकारी साबित हो सकती है इसकी खेती की विधि आसान है खेती के लिए हडजोड़ के पुराने कांड में से कलम काटकर खेत में या नए स्थान पर उद्यानों में वाटिकाओं के सहारे पेड़ के सहारे के लिए वृक्ष के पास रुपए कर देनी चाहिए  इसकी बढ़ाने की गति तेज होती है तथा थोड़े ही समय में बड़ा स्वरूप धारण कर लेती है इसकी खेती मुडेरो पर भी लगाई जा सकती है।

 

 

 

 

कालमेघ अथवा कल्पनाथ से क्या फायदे है What are the benefits of Kalmegh or Kalpnath?

औषधीय पौधों का परिचय :-  यह एक उन्नत शाखित  एक वर्षीय जुल्म जिसका कांड चौरस हरे रंग का इसकी शाखाएं पतली विपरीत पत्र हरे तथा भलाकर पत्रग्राहक व  नोकदर पत्र किनारी तरंगित होती है, पुष्प छोटे श्वेत सफेद कलर गुलाबी रंग के होते हैं। यह पौधा एकेन्थेशी (वास ) कुल का है। बाजार में ही है देसी चिरायता के नाम से बेचा जाता है।

विभिन्न भाषा में इसके नाम :- संस्कृत में भूनिब ,बंगाली में कालमेघ,  गुजराती में  करियातु, तेलुगु  में नेलवेमू ,फारसी में नैनेहवनंदि, अंग्रेजी में क्रेट ( Creat)इस औषधि के पौधों की उत्पत्ति भारत की है।

औषधिय  प्रायोज्य अंग – इसके पंचांग का उपयोग किया जाता है।

पौधों से प्राप्त तत्व :- इसके पंचांग में पाए जाने वाले मुख्य रासायनिक तत्व एंडोग्राफोलिड  (Andrographolid) तथा कलमेघिन  जो तिक्त होते हैं।  यह तत्व ही औषधि हैं।

कालमेघ के फायदे :- कालमेघ पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में उपयोग किए जाने वाला एक महत्वपूर्ण पौधा हैं। इसका उपयोग कई सारी बीमारियों में किया जाता हैं। खासकर इसका उपयोग भारत में उत्तर प्रदेश से लेकर केरल तथा बांग्लादेश पाकिस्तान और सभी दक्षिणी पूर्व एशियाई देशों में  यहाँ  अपने आप उगता हैं। इसे संजीवनी वटी पौधे के तौर पर उगाया जाता है इस पौधे के सभी हिसासे  कड़वे होते हैं जिसके कारण इस पौधे को कड़वाहट का राजा भी कहा जाता हैं।  कालमेघ का उपयोग खून साफ करने वाली कड़वी जड़ी बूटी के तौर पर होता है इसमें मौजूद खून साफ करने के गुण के कारण पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग कुष्ठ रोग ,गोनोरिया, खरोच, फोड़, त्वचा विकार आदि के लिए  कालमेघ से इलाज किया जाता हैं। इसका काडा लीवर की बीमारी और बुखार ठीक करने में उपयोगी है।

कब्ज गैस आदि :- लिवर, अपचां  ,कब्ज, एनोरेक्सिया, पेट में गैस आदि और दस्त आदि में इसके  काढ़ा  का उपयोग किया जाता है मासिक धर्म के दौरान खून के अधिक स्रोत को रोकने के लिए इसकी ताजी पत्तियों के रस का सेवन  बेहत लाभकारी होता है।

बुखार के लिए कालमेघ का उपयोग :-  कालमेघ औषधि गुना से भरपूर छोटा सब होता है इसका उपयोग मुख्य रूप से मधुमेह और डेंगू बुखार के इलाज के लिए किया जाता है यह बूटी तमिलनाडु में बहुत प्रसिद्ध है जिसे वहां नीलवेबू काष्यम भी कहते है इसका उपयोग डेंगू और चिकनगुनिया बुखार के इलाज के लिए किया जाता हैं।

डायबिटीज के लिए उपयोगी :  इसका उपयोग डायबिटीज की समस्या से बचने के लिए भी किया जाता है दरअसल कालमेघ में एंटी डायबेटिक गुण पाए जाते हैं जो कि डायबिटीज की स्थिति में आपको सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं

हृदय स्वास्थ्य के लिए :- हृदय को स्वस्थ को बनाए रखने के लिए कालमेघ का सेवन किया जा सकता हैं। इसे इसलिए मुमकिन है क्योंकि  कालमेघ में   एंटीथ्रांबोटिक  (Antithrombotic Action  रक्त का  थक्का रोकने के लिए क्रिया ) एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार यह बताया गया है कि यह क्रिया धमनियों को पतला कर रक्त प्रभाव को काफी सुधार कर सकती हैं। इससे हृदय रोग के होने का खतरा कम होता हैं।

कैंसर की स्थिति में :- कैंसर की स्थिति में और इसके कारण होने वाले जोखिम से बचने के लिए भी कल में के पौधों का इस्तेमाल किया जा सकता है ऐसा इसलिए मुमकिन है क्योंकि इसमें एंटी कैंसर बन पाया जाता हैं।

इसके साथ-साथ कालमेघ में एंड्रोग्राफोलाइड (Andrographolide) नमक बियोएक्टिव भी पाए जाते हैं, जो ल्युकेमिया (Leukemia )_ एक प्रकार का ब्लड कैंसर, स्तन कैंसर फेफड़ों  के कैंसर और मेलोनोमा कोशिकाओं (melanoka cells  कैंसर का एक प्रकार) सहित अन्य विभिन्न तरह के कैंसर से बचाव करने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करता हैं।

त्वचा के लिए :-  कालमेघ एक प्राकृतिक तत्व है जो  त्वचा के  लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा को ताजगी प्रदान करते हैं और रूखी हुई त्वचा को मुलायम बनाती है। कालमेघ दाद, खाज-खुजली आदि से त्वचा की रक्षा करता है, उसे नमी प्रदान करता है। यह त्वचा को सुंदर और स्वस्थ बनाए रखता है। इसके लिए प्रभावित त्वचा पर कालमेघ पत्तियों को पीसकर लेप लगाएं। इसे रात को सोने से पहले लगाना अधिक फायदेमंद होता है। इसके अलावा इसके 1-1 टैबलेट या कैप्सूल भी लिया जा सकता है।

बुखार में उपयोग  :- सामान्य  कालमेघ बुखार में का उपयोग बहुत ही लाभदाय  होता है। कालमेघ में विशेष तत्व होते हैं जो शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और बुखार को कम करने में मदद करते हैं। कालमेघ में एंटीऑक्सिडेंट्स , एंटीबैक्टिरियल, एंटीवाइरल गुण होते हैं जो बुखार को कम करते हैं। बुखार से छुटकारा पाने के लिए कालमेघ के पंचांग के काढ़े का दिन में 2-3 बार बुखार ठीक न होने तक सेवन करें। एक बार में 20-30 मिलीलीटर काढ़ा पी लें।

गठिया में लाभदायक :- कालमेघ  गठिया में लाभदायक है। इसमें विटामिन सी, बी, डी, फोलिक एसिड तथा अन्य आवश्यक तत्व पाए जाते हैं, जो गठिया के लिए उपयुक्त हैं। यह जोड़ों के दर्द को कम करने, सूजन को घटाने, गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है। कालमेघ का उपयोग मात्रा व्यक्ति की स्थिति और उम्र के आधार पर भिन्न हो सकता है। आमतौर पर वयस्कों के लिए कालमेघ के 1-1 कैप्सूल को गुनगुने पानी के साथ सुबह-शाम सेवन की सलाह दी जाती है। इसके अलावा कालमेघ के तेल को जोड़ों पर मालिश करना भी लाभदायक होता

कालमेघ के नुकसान – Side Effects of Kalmegh in हिंदी 

कालमेघ के नुकसान कुछ इस प्रकार हैं 

  • इसका अत्यधिक मात्रा में किया गया सेवन एलर्जी उत्पन्न कर सकता है।
  • दूसरी दवाओं के साथ कालमेघ का सेवन इंरैक्ट कर सकता है। इसलिए यदि आप किसी दवा का सेवन कर रहे हैं तो कालमेघ को लेने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श लें।
  • कालमेघ का अधिक सेवन लो बीपी और लो शुगर का कारण बन सकता है। इसलिए समय समय पर बीपी और शुगर लेवल मॉनिटर करते रहें।
  • इसके अधिक सेवन से भूख में कमी आ सकती है।
  • गर्भावस्था और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कालमेघ चूर्ण के सेवन से बचने की सलाह दी गई है।

कालमेघ का पौधा, जिसे अभी तक आप एक जंगली पौधा समझ रहे होंगे, उसके फायदों को जानने के बाद अब आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके सेवन से जुड़ी मात्रा के बारे एक बार आहार विशेषज्ञ से जरूर मिलें। कालमेघ के स्वास्थ्य फायदों को पढ़ने के बाद अगर आपको या आपके किसी करीबी को इसके सेवन से कोई लाभ मिलता है, तो उसका अनुभव हमारे साथ जरूर शेयर करें। इसके अलावा, अगर आपके मन में कालमेघ से जुड़ा कोई सवाल हो तो आप कॉमेंट बॉक्स द्वारा बेझिझक हमारे साथ साझा करें।

 

 

 

 

 

एलोवेरा से क्या होता है What happens with aloe vera?

एलोवेरा( घृतकुमारी ) : तुलसी गिलोय की तरह यद्यपि एलोवेरा जिसे घी कुवार भी कहते हैं।  मसाला तो नहीं है पर आंगनबाड़ी लगाते समय इसे भी लगा देना चाहिए अपने ढंग की घरेलू दवा तो है ही उसकी प्राकृतिक गर्म मानी जात जाती है एवं शक्ति वर्धक भी सामान्य उपयोग में इसका गूदा ही आता है जो  छिलके के साथ मजबूती से चिपका रहता है। इसे चाकू से ही अलग करना पड़ता हैं। घी तेल में डालकर मसाले डालकर इसे शाक कि तरह भी खाया जा सकता है। और घी आटे  में मिलाकर लड्डू कतली भी बना सकते हैं इसे आहार की तरह सीमित मात्रा में उपयोग किया जा सकता है प्रवास के उपरांत जनानी को भी पेट की सफाई के लिए खिलाया जाता हैं। पेट के रोगों में विशेष रूप से काम आता है उसकी  पुलिस्ट दुखाने वाले स्थान पर बांधी  दी जाती है।  पेट दर्द सिर दर्द आदि में इसकी लुगदी बांध देने से फायदा होता हैं। अपने एलोवेरा का बहुत नाम सुना होगा और यह भी सुना होगा की एलोवेरा को औषधि की तरह इस्तेमाल किया जाता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एलोवेरा के औषधीय गुण क्या क्या है क्या आपको पता है कि किस-किस रोग में एलोवेरा के इस्तेमाल से लाभ मिलता हैं। आयुर्वेदिक में एलोवेरा के फायदे के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई है कई प्रकार से एलोवेरा का उपयोग  किया जाता है ऐसी कई सारी बीमारियां है जो एलोवेरा से ठीक की जाती हैं।

एलोवेरा क्या है : 

एलोरा का पौधा छोटा होता है इसके पत्ते मोटे गोरेदार होते हैं पत्ते चारों तरफ लगे होते हैं। एलोवेरा के पत्तों के आगे का भाग नोकीला  होता है इसके किनारो पर हल्के  हल्के के कांटे होते हैं पत्तों के बीच से फुलो का गुलदस्ता  निकलता है  होता है जिस पर पीले रंग के फूल लगे होते हैं हरे कलर के पत्ते होते हैं लंबे-लंबे और इसके अंदर सफेद कलर का एक परत जमी होती है भारत के अलग-अलग देश में एलोवेरा की कई प्रजाति पाई जाती है मुख्यतः दो प्रजातियों का चिकित्सा में विशेष तौर पर प्रयोग किया जाता है एलोवेरा और पितापुष्पा कुमारी आदि ।

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अन्य भाषाओं मे एलोवेरा के नाम :

* हिंदी मे – घीकुआर   ग्वारपाठा

* संस्कृत – कुमारी ग्रहकन्या कन्या घृतकुमारी

* कन्नड़ – लोलिसार

* गुजराती – कुंवर कड़वी कुवार

* बंगाली – घ्रतकुमारि

* पंजाबी – कोगर  कोरवा

* मराठी – कोरफाड़  कोरकांड

* फारसी दरख्ते सिब

* इंग्लिश – इंडियन एलो

*  लैटिन  – एलोवेरा

एलोवेरा के औषधीय गुण  


फेफड़ों की सूजन स्वास्थ्य : फेफड़ों की सूजन स्वास्थ्य रोग तिल्ली जिगर तथा गुर्दों की बीमारी में इसका उपयुक्त लाभकारी है।

मज्जावर्धन कामोत्तेजना : घी कुंवर के रस को सुखाकर एक पदार्थ बनाया जाता है जिससे एलुआ या मुसबार कहते हैं वह नरम वह पारदर्शी होता है। मज्जावर्धन कामोत्तेजना  देने वाला  कृमि नाशक एवं विष  निवारक माना गया है।

माल शोध : सारे शरीर के माल शोधन  हेतु घीकुवार एक श्रेष्ठ औषधि मानी जाती हैं। जठराग्नि को यह प्रदीप करता है एवं हर प्रकार की खासी, लीवर के रोग में आराम पहुंचता हैं।

चर्म रोग : यह चर्म रोग में भी आराम पहुंचता है चर्म रोगों में यह रक्त शोधन की भूमिका निभाता हैं।

आँत और उत्तर गुदा : पेट में इसकी प्रधान क्रिया बड़ी आंत एवं उत्तर गुदा (एनोरेक्टल जक्सन ) पर होती है घी कुवार का गुड़ा 6 मांस मिलाकर खाने से वायु गोले से हुआ पेट दर्द मिट जाता हैं। रक्त प्रदर श्वेत प्रदर एवं हर प्रकार के प्रजनन अंगों की बीमारियों में प्रयोग लाभकारी हैं।

मासिक धर्म के समय : रजोरोध रहोने पर मासिक धर्म के समय से एक सप्ताह पूर्व इसका सेवन आरंभ कर देना चाहिए ।

पत्र का स्वरस माता में  19 से 20 मिली लीटर (दो से चार छोटे चम्मच) एवं एलवा चूर्ण 1/2 ग्राम तक की मात्रा में देते हैं अधिक मात्रा में देने पर मरोड़ के साथ दस्त आने लगते हैं अतः मात्र का ध्यान हर स्थिति में रखना चाहिए विशेष रूप से सुख अलावा चरण के संबंध में ।

स्क्रीन के लिए फायदेमंद : एलोवेरा में ऐसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं जो प्रदूषण ,धूप, धूल के कारण होने वाली त्वचा की समस्याओं से दूर रखने में मदद करता हैं। इसके जेल को चेहरे पर लगाने से कील मुंहासे, पिंपल्स दाग धब्बे से छुटकारा मिलता हैं। पानी की 99% मंत्र एक्स्ट्रा जेल की तरह काम करती हैं। और साथ ही बॉडी को हाइड्रेट भी रखती है चेहरे पर रोजाना इसका जेल लगाने से कुछ ही दिनों में आपकी कोमल त्वचा हो जाती है और साथ ही स्किन इन्फेक्शन का भी खतरा नहीं रहता है एलोवेरा त्वचा लंबे समय के लिए बढ़िया रहती हैं।

 

 

 

 

 

गूजग्रास: स्वास्थ्य लाभ और उपयोग Goosegrass: Health Benefits and Uses

गूजग्रास: स्वास्थ्य लाभ और उपयोग (Goosegrass: Health Benefits and Usइस जड़ी बूटी अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। क्योंकि लोग इसके चमत्कार लाभ को नहीं जानते हैं ।

अन्य भाषाओं में इसके नाम  :-  गुजग्रास (वैज्ञानिक नाम गैलियम अपारिन) जिसे क्लिवर् या केचविड के नाम से भी जाना जाता है। एक आम जंगली जड़ी बूटी है। इसका कई तरह के औषधि उपयोग है अक्सर  खरपतवार माना जाने वाला गुजग्रास अपने कई स्वास्थ्य लाभों के कारण सदियों से पारंपरिक चिकित्सा में इस्तेमाल किया जा रहा है। या गुजग्रास के मुख्य स्वास्थ्य लाभ और इसके उपयोग जो की आप आसानी से उपयोग कर सकते हैं । घर के आसपास गली चौराहे या खेत की मेड बाग बगीचे में आसानी से पाया जाता है। भली भाती आप सभी इस से परिचित है। लेकिन इसके स्वास्थ्य और लाभ का उपयोग कोई नहीं कर पाता आईए जानते हैं हम लोग अपनी रोजाना जिंदगी में इसका उपयोग कैसे करें इसके लाभ इसके फायदे सभी में आपको इस विस्तार पूर्वक बताऊंगा ।

 

गुजग्रास के स्वास्थ्य लाभ :-

यकृत स्वास्थ्यस्वास्थ – यह यकृत के कार्य का समर्थन करता है और पित्त उत्पादन में सुधार करके शरीर को विषमुक्त करने में मदद करता है।

प्रतिरक्षा को बढ़ाता है – गूजग्रास के रोगाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुण प्रतिरक्षा प्रणाली की सुरक्षा को बढ़ा सकते हैं।

हड्डियों का स्वास्थ्य– इसके नियमित सेवन से इसमें मौजूद खनिज तत्व हड्डियों को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।

कब्ज से राहत दिलाता है – गूजग्रास एक हल्के रेचक के रूप में काम करता है, जो कब्ज के उपचार में सहायता करता है।

परिसंचरण में सुधार– बेहतर रक्त प्रवाह को बढ़ावा देकर, यह रक्त के थक्कों के जोखिम को कम कर सकता है और समग्र हृदय स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है।

कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है– माना जाता है कि गूजग्रास एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है, जिससे हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।

कैंसर-रोधी क्षमता– कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि गूजग्रास में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैंसर की रोकथाम में भूमिका निभा सकते हैं।

चिंता कम करता है – गूजग्रास चाय पीने से शांतिदायक प्रभाव पड़ता है, जिससे चिंता और तनाव से राहत मिलती है।

सिरदर्द से राहत – पारंपरिक उपचार में, गूजग्रास का उपयोग तनाव से होने वाले सिरदर्द को कम करने के लिए किया जाता है।

आरामदायक नींद को बढ़ावा देता है – गूजग्रास के शांतिदायक गुण नींद की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं।

साँप के काटने का इलाज करता है – कुछ पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में, इसका उपयोग साँप के काटने के इलाज और विष के प्रसार को रोकने के लिए किया जाता है।

शरीर को डिटॉक्सिफाई  करता है _ गुजरात अपने मूत्रवर्धक गुना के लिए जाना जाता है जो शरीर से अतिरिक्त तरल पदार्थ और विषाक्त पदार्थ को बाहर निकलने में मदद करता है इसका इस्तेमाल अक्सर लिवर किडनी और लसिका तंत्र को साफ करने के लिए हर्बल डेडॉक्स उपचार में किया जाता है

यह क्यों महत्वपूर्ण है 

शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकलना और पानी के प्रतिधारन को कम करने में मदद करता है।

गुद्रे और यकृत के स्वास्थ्य का समर्थन करता है समग्र इस हरण को बढ़ावा देता है।

लसीका प्रणाली के स्वास्थ्य का समर्थन करता है

गुजग्रास के सबसे उल्लेखनीय लाभो में से एक लसीका प्रणाली का समर्थन करने की इसकी क्षमता है। यह लसीका द्रव्य की गति को उत्तेजित करने सूजन को कम करने और शरीर से विषयक पदार्थों को साफ करने में मदद करता है।

लिम्फ नोडस में सूजन और सूजन को कम करता है।  लिम्फडेमा अन्य लसीका प्रणाली विकारों जैसी स्थितियों मे मदद करता है।

लिम्फ नोड्स में सूजन और सूजन को कम करता है।
लिम्फेडेमा और अन्य लसीका प्रणाली विकारों जैसी स्थितियों में मदद करता है।….
. प्राकृतिक मूत्रवर्धक के रूप में कार्य करता है
गूसग्रास मूत्र उत्पादन को बढ़ावा देता है, जिससे यह पानी के प्रतिधारण और सूजन को कम करने के लिए एक सहायक उपाय बन जाता है। इसके मूत्रवर्धक गुणों का उपयोग मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) और गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए किया जा सकता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

संक्रमण के जोखिम को कम करके मूत्र स्वास्थ्य का समर्थन करता है।
मूत्राशय के संक्रमण और गुर्दे की पथरी जैसी स्थितियों का इलाज करने में मदद करता है।

. सूजन को कम करता है
गूजग्रास में सूजनरोधी गुण होते हैं, जो इसे जलन वाली त्वचा को शांत करने और आंतरिक सूजन को कम करने के लिए उपयोगी बनाता है। इसे गठिया और अन्य सूजन संबंधी समस्याओं जैसी स्थितियों में मदद करने के लिए शीर्ष पर लगाया जा सकता है या इसका सेवन किया जा सकता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

गठिया से होने वाले जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करता है।
एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा की स्थितियों को शांत करने में मदद करता है।

.त्वचा के स्वास्थ्य का समर्थन करता है
इसकी सफाई और सूजन-रोधी गुणों के कारण, गूजग्रास का उपयोग अक्सर त्वचा की स्थितियों के इलाज के लिए किया जाता है। पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग घावों, जलन और चकत्ते के उपचार में किया जाता है। यह मुँहासे, एक्जिमा और सोरायसिस को शांत करने में भी मदद कर सकता है।

यह क्यों मायने रखता है:
घाव भरने को बढ़ावा देता है और जलने या कटने से होने वाली जलन को कम करता है।
सूजन को कम करके और विषहरण करके मुँहासे और अन्य त्वचा संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।
.प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देता है
गूसग्रास में प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो मुक्त कणों से लड़ने और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद करते हैं। गूसग्रास चाय या अर्क का सेवन संक्रमणों के खिलाफ शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

संक्रमण और बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता को बढ़ाता है।
शरीर को मुक्त कणों से बचाता है, जिससे पुरानी बीमारियों का खतरा कम होता है।
वजन घटाने में सहायक
गूजग्रास के मूत्रवर्धक गुण अतिरिक्त पानी के वजन को कम करने में मदद कर सकते हैं, जिससे यह वजन घटाने की दिनचर्या में उपयोगी हो जाता है। यह सूजन को कम करने और स्वस्थ चयापचय का समर्थन करने में मदद कर सकता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

पानी के वजन को प्रबंधित करने और सूजन को कम करने में मदद करता है।
स्वस्थ चयापचय का समर्थन करता है, वजन प्रबंधन में सहायता करता है।
.पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है
गूजग्रास को स्वस्थ पाचन का समर्थन करने के लिए जाना जाता है। अपच, सूजन और कब्ज को शांत करने के लिए इसे चाय के रूप में सेवन किया जा सकता है। जड़ी बूटी का उपयोग अक्सर पाचन तंत्र को साफ करने और पोषक तत्वों के अवशोषण को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है:

पेट फूलने और कब्ज जैसी पाचन संबंधी असुविधा से राहत देता है।

नियमित मल त्याग को बढ़ावा देकर समग्र आंत के स्वास्थ्य का समर्थन करता है।

गूजग्रास के सामान्य उपयोग
हर्बल चाय: गूजग्रास का सेवन करने का सबसे आसान तरीका ताजा या सूखी जड़ी बूटी से चाय बनाना है। चाय का उपयोग विषहरण, पाचन में सहायता या मूत्रवर्धक के रूप में किया जा सकता है।

स्थानिक अनुप्रयोग: गूजग्रास को कट, जलन और चकत्ते को शांत करने के लिए सीधे त्वचा पर लगाया जा सकता है। इसे पुल्टिस में बनाया जा सकता है या बाम में मिलाया जा सकता है।

टिंचर: गूजग्रास टिंचर का उपयोग अक्सर लसीका प्रणाली का समर्थन करने और विषहरण में मदद करने के लिए किया जाता है।

हर्बल सप्लीमेंट्स: गूजग्रास कैप्सूल के रूप में पाया जा सकता है और इसे मूत्र स्वास्थ्य, पाचन स्वास्थ्य और विषहरण का समर्थन करने के लिए लिया जाता है। जूसिंग: विषहरण लाभों को बढ़ाने के लिए अन्य सागों के साथ ताजा गूजग्रास का जूस बनाया जा सकता है।
गूजग्रास का उपयोग कैसे करें
गूजग्रास चाय: सूखे गूजग्रास के 1-2 चम्मच को 10 मिनट के लिए गर्म पानी में भिगोएँ। इसके स्वास्थ्य लाभों का अनुभव करने के लिए प्रतिदिन 1-2 कप पिएँ।
पुल्टिस: ताजे पौधे को मसल लें और इसे सीधे त्वचा की जलन, घाव या चकत्ते पर लगाएँ ताकि उपचार में मदद मिल सके।

जूस: अतिरिक्त डिटॉक्स लाभों के लिए अपने हरे जूस मिश्रण में ताजा गूजग्रास मिलाएँ।

गूजग्रास एक आम बगीचे की खरपतवार हो सकती है, लेकिन इसके स्वास्थ्य लाभ कुछ भी नहीं हैं। डिटॉक्सिफिकेशन से लेकर लसीका प्रणाली का समर्थन करने और स्वस्थ त्वचा को बढ़ावा देने तक, गूजग्रास प्राकृतिक उपचार में एक मूल्यवान जड़ी बूटी हो सकती है। चाहे आप इसे चाय के रूप में पिएँ या इसे शीर्ष पर लगाएँ, यह विनम्र पौधा आंतरिक और बाहरी स्वास्थ्य दोनों के लिए कई तरह के लाभ प्रदान करता है। किसी भी हर्बल उपचार को शुरू करने से पहले हमेशा एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर से परामर्श करें, खासकर यदि आप गर्भवती हैं, स्तनपान करा रही हैं या दवा ले रही हैं।

 

 

 

 

अडूसा  क्या काम आता है उसके फायदे What are the benefits of Adusa

 स्वास्थ्य के लिए अडूसा  क्या काम आता है। उसके फायदे गुण और लाभ सभी आपको बताया जाएंगे और  आड़ूसे का क्या उपयोग करें किन-किन बीमारियों में इसका उपयोग करें कितनी मात्रा में इसका उपयोग करें यह सारी बातें आपको बताई जाएंगे  ।

विभिन्न भाषाओं के नाम 

बंगाली – वासक,  मराठी  – अडलास, गुजराती  आरडुसी ,  कन्नड़ आड़ूसोगे,  पंजाबी भकर, तमिल  अटतो।

   What are the benefits of Adusa for health?  स्वास्थ्य के लिए अडूसा  क्या काम आता है उसके फायदे

  अड़ूसे का साधारण परिचय:-  यह वन औषधि भारत के सभी प्रांतों  में प्राकृतिक रूप से  उगती  पाई  जाती है । यह एक सदा हरित झाड़ी नमा क्षुप है । यह 6 से 8 फीट ऊंचा होता है इसकी लंबी शाखों पर सफेद पुष्प होते हैं। इसके पत्ते घर हरे रंग के होते हैं। इस पेड़ की खासियत है कि  इस पेड़ के फूल ,डंठेली ,जड़, तने, सबको हम औषधि में उपयोग कर सकते हैं।

आड़ूसा के औषधीय गुण :- इसके पत्ते ,पुष्प, फल, तथा मूल का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है । इसके पत्तों तथा जड़ों का प्रयोग पीलिया खांसी तथा  कुपचन में किया जाता है । इसके पत्तों में पाए जाने वाला तेल तथा  वेसीन खांसी तथा स्वास्थ्य रोग में अत्यंत उपयोग होता है । इसमें एक अन्य हाइपरटेंसिव गुण होता है जो हृदय रोग में बहुत ही उपयोगी होता है। इसके पत्तों से मिले पीले रंग की दाई का निर्माण किया जाता है इसकी जड़ों से खांसी तथा  पीलिया रोगों के लिए औषधि का निर्माण होता है ।

और  अडूसे  का उपयोग

1) सर दर्द में आराम: आड़ूसे  के फूलों को सुखाकर उसे कूट पीस ले । उसके साथ थोड़ी सी मात्रा में गुड मिलाकर उसकी छोटी-छोटी गोलियां बना ले रोजाना एक गोली के सेवन से सिर दर्द की समस्या खत्म हो जाती है । यह प्रयोग नियमित तरीके से करें।

2) खून को रोकने के लिए : आड़ूसा की जड़ और फूल का काढ़ा करके घी में पक्का शहद मिलाकर खाने से यदि कहीं से रक्त आता हो तो बंद हो जाता है ।

3) जोड़ों का दर्द: इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर जोड़ों के दर्द के उपचार के लिए दिया जाता है तथा गर्व पाटन हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है।

4) अस्थमा रोग में : श्वास रोग में इसके सूखे पत्तों को रोल कर सिगरेट की तरह धूम्रपान करने से लाभ होता है।

5) ब्रोकाइटिस एवं खासी : ब्रोंकाइटिस एवं खांसी जैसे जिन रोगों में पत्तों और जड़ों में  अदरक मिलाकर कड़ा तैयार कर पिलाने से अति लाभकारी सिद्ध होता है।

6) महिलाओं का मासिक धर्म : महिलाओं के मासिक धर्म को नियमित करने के उपचार हेतु इसके पत्तों का खड़ा बहुत ही उपयोगी होता है।

7) पीलिया रोग एवं मूत्र :  कामला (पीलिया )रोग तथा मूत्र विकारों के लिए उपचार हेतु इसका उपयोग लाभकारी साबित होता है।

8) नेत्र रोग : नेत्र रोगों में ताजी पुष्प का प्रयोग लाभकारी होता है।

9) रक्त शुद्धीकरण :  रक्त शुद्धीकरण तथा रक्त संचरण नियमित करने हेतु इसके पुष्पों का कड़ा अत्यंत उपयोगी है ।

10) क्षय (टी. वी) रोगों के लिए : वसा  अड़ूसा उसे के तीन लीटर रस में 220 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं जब गड़ा होने को हो तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपली का चूर्ण मिलाले जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाए तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिला कर प्राप्त चलाएं ठंडा होने पर उसमें 120 ग्राम शहद मिला ले 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टीवी के रोगों को दे सकते हैं साथ ही  खांसी , सांस के रोगों ,कमर दर्द ,हृदय का दर्द, रक्तपत्ती तथा बुखार को भी दूर करता है।

11) फोड़े -फुंसी : अड़ूस के पत्तों को पीसकर गढ़ ॎ  लेप बनाकर फोड़े फुंसी की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बाधने से इनका असर कम हो जाएगा । यदि पक गया हो तो शीघ्र ही फूट जायेंगे । फूटने के बाद इसके लेप में थोड़ी पीसी हल्दी मिलाकर लगाने से शीघ्र घाव भर जाएंगे।

12) खुजली : अड़ूस उसेके नर्म पत्ते और अंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अड़ूस  को पानी में उबाले और उसे पानी से स्नान करें खुजली जड़ से खत्म हो जाएंगे।

अडूसा का यह पौधा हमारे देश में लगभग सभी प्रांतों के सभी क्षेत्रों में प्राकृतिक रूप से प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। एवं उसकी पहचान कर इसके सरल उपयोग ऊपर बताइए की विधि के अनुसार  उनके रोगों से मुक्त पाया जा सकता है। वैसे यदि इसकी खेती विद्युत तरीके से की जाए तो किसानों के लाभ के साथ-साथ प्रजा को भी लाभकारी साबित हो सकता है।

दुख से हृदय की कठोरता कम होती है। दुख वस्तुतः एक प्रकार का ताप है दुख से अभिमान का दमन  होता है। इससे साहस और धैर्य बढ़ता है। एवं दूसरों के लिए अनुभूति  पनपति है।

 

अदरक खाने के फायदे Benefits of eating ginger

अदरक:-(Benefits of eating ginger ) अदरक खाने के फायदे अदरक गीली  गाठि हैं। जो जमीनकंद की तरह जमीन में   गड़ी रहकर  बढ़ती रहती है इसमें से जितनी आवश्यकता है काटकर शेष भाग को फिर जमीन में गढ़ और भविष्य के लिए पढ़ते रहने दिया जाता है। यही अदरक जब सुख लिया जाता है तब  सोठ बन जाती है।  बोने के लिए इसके टुकड़े काट काट कर ही गाडा दिया जाते हैं। इसके  बीज नहीं होता हैं। अदरक का वैज्ञानिक नाम जिंजीबरेसी कहलाता है। आप और हम सभी अदरक से परिचित हैं।

आए दिन हमारे घर में अदरक का उपयोग किया जाता हैं। अधिकतम मसाले में किचन वगैरा में रसोई घर में अदरक का उपयोग किया जाता हैं। सुबह की शुरुआत अदरक की चाय के साथ होती हैं। सभी जगह अदरक का उपयोग  बड़ी  आसानी से किया जाता हैं। इसके फायदे से सभी लोग अपरिचित हैं। तो आज हम बात करेंगे अदरक के गुण फायदे लाभ आदि।

अदरक के फायदे और उपयोग :- 

1) अदरक पंचक है। पेट में कब्ज , गैस बनना,वामन ,खासी ,कब, जुखाम ,आदि में काम में लाया जाता हैं। नमक मिला चटनी बनाकर चाटते रहने बारीक ना  पीस सके तो टुकड़े को मुंह में डालकर चूसते रहने से लाभ मिलता हैं। बच्चों के लिए रस के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।

 

2) अदरक का रस और शहद मिलाकर चाटते रहने से दमा स्वास खांसी से लेकर छाये रोग तक से सुधार होता हैं। हिचकी जमुहाई का अनुपात बढ़ जाए तो भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।दाढ़ के दर्द में भी इसका सेवन उपयोगी हैं।

अदरक और सोठ के गुण एक जैसे होते हैं, पर जब  चूर्ण में उसका प्रयोग करना हो तो सोठ लेना ही उपयुक्त है इसमें अदरक की तरह बार-बार पीसने का झंझट नहीं रहता।

3) अदरक भोजन के कुछ पूर्व लेने से अग्नि प्रदीप करती है, भूख बढ़ती है। इसमें दोनों गुण है , आंतो की प्रवाही स्थिति में ग्राही भी है एवं कब्जियत को भेदने का गुण भी इसमें है। यह आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध योग त्रिकुटा (सोठ, काली मिर्च, पिप्पली का एक प्रधान अंग हैं।

4) अदरक का ताजा रस मूत्र निस्तारक  (ड्यूरेटिक )औषधि गया हैं। मूत्र संबंधित विकारों को दूर करती है।

5) विषम  ज्वरा में को दुग्ध के साथ डेढ़ माहसे की मात्रा में हृदय रोग में कुन कुनी क्वाथ  के रूप में हिचकी में आमला व पीपली का चूर्ण शहद के साथ  पक्षाघात में सेंधा नमक के साथ महीन पीसकर सूंघने के रूप में   अर्जिन मे धनिए के साथ क्वाथा बनाकर संग्राहिनी में बच्चे बेल का गुड़ा अदरक एवं गुड़ मिलाकर   मठ्ठा के साथ पीने से तथा  सोठ और गोखरू का   क्वाथा प्रात: पीने से  पीट वह कमर के दर्द में आराम पहुंचता है।

6) आपको बता दे अदरक में कई प्रकार के कैंसर को रोकने की क्षमता होती हैं। अदरक में उपस्थित एंटीऑक्सीडेंट पेट में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं जो कालोरक्टल कैंसर को बढ़ावा दे सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि अदरक में अपॉप्टोसिस भी होता हैं।  जो ट्यूमर और कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में मदद करता है जिंजरोल त्वचा कैंसर को भी काम करने में मदद करता हैं।

7)

अदरक का उपयोग प्राचीन समय से यौन गतिविधि और शक्ति को बढ़ाने के लिए किया जा रहा हैं।  इससे  आने वाली खुशबू आपकी यौन इच्छा और क्षमता को बढ़ाने में मदद करती हैं। अदरक आपके शरीर में रक्त प्रभाव को भी बढ़ता हैं। आपके शरीर की मध्य में रक्त अधिक आसानी से फैलता है जो कि यौन प्रदर्शन के लिए विशेष आवश्यक होता हैं।

 

अब जानते हैं अदरक के  नुकसान :-

अधिक सेवन करने के कारण अदरक के नुकसान भी देखने को मिल सकते हैं, जो कि कुछ इस प्रकार है।

* अदरक में ब्लड शुगर कम करने का गुण होता है इसलिए डायबिटीज की दवा लेने वालों में इसका अधिक सेवन अदरक के नुकसान के तौर पर लो ब्लड शुगर का कारण बन सकता हैं।

* यह ब्लड प्रेशर को कम करने का काम कर सकता है इसलिए ब्लड प्रेशर कम करने वाली दवा लेने वाले लोगों को इसके सेवन में सावधानी बरतनी चाहिए।

* विशेषज्ञों में के मुताबिक अदरक खून को पतला करने का भी काम कर सकता हैं। इस कारण कुछ महिलाओं को अधिक सेवन  से मासिक धर्म में अधिक रक्त  स्रोतव सकती हैं।

इसलिए को पढ़ने के बाद अब तो आप अदरक के फायदे और नुकसान अच्छे से समझ गए होंगे। साथ ही आपको अदरक के औषधीय गुण भी पता चल गए होंगे । फिर सोचना समझना क्या लीग में सो जाए गए तरीकों को अपनाना आप इसे आसानी से अपने जीवन में शामिल कर सकते हैं वहीं इसके सेवन के बाद अगर कोई कुछ प्रभाव सामने आता हैं। तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें उम्मीद करते हैं कि यह लेख आपके स्वास्थ्य को बनाए रखने में काफी हद तक उपयोग साबित होगा इसलिए को आपके दोस्तों रिश्तेदारों को सजा करें ।

 

 

 

How to use Giloy : गिलोय का उपयोग कैसे करें

* गिलोय (अमृत) -(How to use Giloy)गिलोय का उपयोग कैसे करें आमतौर पर देखा जाए तो गिलोय जंगल में पाई जाती हैं। बड़े ऊंचे हरे पेड़ पर पाई जाती है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण  होती है। अगर  हमे  चाहिए तो हरे नीम के पेड़ की । नीम की पेड़ की गिलोय का अधिक महत्व बताया गया है बताया जाता है कि नीम के पेड़ की गिलोय जो होती है अधिक शुद्ध होती हैं।  काफी असरदार और कारगर होती है। गिलोय के तने  और पत्ते भी उपयोग में आते हैं गिलोय को तोड़ते समय पूरा उखड़े नहीं जितना रहे उतना ही उपयोग करें क्योंकि बहुत महत्वपूर्ण होती है।

गिलोय को पानी में पीसकर ठंडाई जैसी बना लेनी चाहिए यह उसे पंसारी चुकाकर भी टुकड़ों में भेजता है गिलोय का शक्ति निकलते हैं पर अधिक अच्छा यह है कि उसे गली स्थिति में ही लिया जाए चटनी या ठंडाई के रूप में भी प्रयुक्त किया जाए इसे एक बार या आवश्यकता अनुसार पता शायद दो बार भी लिया जा सकता है।

गिलोय को रामबाण स्टार की संजीवनी बूटी माना गया है इसके गुण पर रहते हैं तुलसी से ही मिलते-जुलते हैं यह भी माना गया है की गिलोय अगर हम नित्य ले तो हमें किसी भी प्रकार की बीमारी छू भी नहीं सकती इस प्रकार गुणों का महत्व बताया गया है।

*आईए जानते हैं गिलोय के उपयोग और लाभ

1) रक्तचाप ,हृदय ,रोग एवं माध्यमों के लिए और साधारण सिद्ध होते हैं।

2) गिलोय को बल वर्धन भी माना गया है अगर हम ताजी गिलोय को घर ले आए साफ करके उसको कूट के पानी में भिगोए और सुबह नित्य उठकर पिए बलवर्धक सिद्ध होती है।

3) वह प्रेमह स्वप्नदोष वह नपुंसकता आदि में भी अपना प्रभाव प्रस्तुत करती है यह हानि रहित औषधि हैं।

4) गिलोय घी के साथ  वात को खत्म करता हैं। शक्कर के साथ पित्त को खत्म करता हैं। शहर के साथ कफ खत्म करता है एवं शोठ  के साथ आमवत को दूर करता हैं।

5) इसका   ज्वर  शामक गुण किसी भी एंटीबायोटिक से कई गुना बढ़कर हैं।

6) क्षय रोग में ढाई तोला गिलोय का रस छोटी पिपली के एक ग्राम चूर्ण के साथ प्रातः काल पीला  पिलाया जाता है तो यह रोक आसानी से ठीक हो सकता है।

7) सिर्फ विष मे  इसकी जड़ का रस या   कड़ा कटे हुए स्थान पर लगाया जाता है आंखों में डाला जाता है एवं आधे आधे घंटे में पिलाया जाता हैं।

8) गिलोय एक मेधा वर्धक औषधि है मस्तिष्क विकारों में बड़ी उपयोगी है एवं एक रसायन हैं।

9) हाथ पैर घुटने और जोड़ों में दर्द हो तो गली  गिलोय का उपयोग करें रात में 3 से 4 टुकड़े कूद कर भिगोकर रखें और सुबह इसे छान कर पी ले कुछ दिनों में तुरंत आराम मिलेगा

10) अगर चिकनगुनिया की बीमारी हो तो ताजी किलो तोड़ कर ले और सुबह 4 से 5 टुकड़े आधा गिलास पानी में गर्म करके इसका काढ़ा बनाएं और रोजाना सेवन करें जड़ से खत्म हो जाएंगे

गिलोय एक रामबाण इलाज है हम लोग उसके बारे में अपरिचित है या फिर हम लोग उसका उपयोग करना नहीं जानते गांव खेत खलियानों में यह अधिकतम पाई जाती है अगर हम इसका सही उपयोग करें तो जोड़ों का दर्द घुटनों का दर्द नापूछसकता शरीर में ढीलापन शरीर में तनाव आदि बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है हमें नित्य साइन कल में दो से तीन गिलोय के टुकड़ों को काटकर भिगोकर रखना है और प्रातः सुबह-सुबह उसको छान कर पी लेना है।

 सत्व निकालने की विधि:-

गिलोय के तने से ऊपरी पतली  छाल निकल कर एक से दो इंच लंबे टुकड़े कर इनको डंडे से कूटकर  10  गुने जल में भिगो दे। इनको मिट्टी के बर्तन में भिगोकर रखा जाता है 12 घंटे तक  भिगोने  से गिलोय के टुकड़े फुलकर मुलायम हो जाते हैं तब इनको हाथ से अच्छी तरह मसल कर बाहर निकाल कर फेंक दे गिलोय का स्टार्च पानी में घुल जाता है इसे शेष बचे पानी को मोटे कपड़े से छान ले तीन से चार घंटे तक पढ़ा  रहने दे। बर्तन के पेंदे में गिलोय स्टार्च जम  जाएगा। इसके ऊपर का पानी निथार् कर फेक  दे। बर्तन के पेंदे में श्वेत वर्णों का जमा सत्व धूप में सुखाले। यह सत्तू भी बाजार में औषधि के रूप में अच्छे मूल्य पर बिकता है। गिलोय की बिक्री से होने वाली आय के अतिरिक्त सहारा वृक्ष से भी आमदनी होती है गिलोय की छांव में छाया पसंद औषधि पौधों की भी खेती की जा सकती है इस प्रकार गिलोय  का उपयोग करके हम गिलोय के सत्व  को बेच भी सकते हैं और औषधि के रूप में इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

आवश्यक सूचना

पास से किसी चिकित्सक या परामर्श की सलाह अवश्य ले।